जिन्दगी की पतंग
बंधी साँसों की डोर से
उड़ चली आसमान में
डोर कब कटनी है
नहीं जानती
उड़ान भरती बिंदास
अनजाने परिवेश में
मन में अटूट विश्वास लिए
उसने हार कभी न मानी
ना ही कभी मानेगी
ऊंचाई छूना चाहती है
है विकल आगे जाने को
डोर है मजबूत
यूं ही नहीं टूटेगी
मंजिल तक पहुंचा कर ही
किसी कमजोर क्षण में
झटके से टूटेगी
या झटके खाएगी
कहीं बीच में लटका देगी
यह है मात्र कल्पना
सच से बहुत अलग
कोई नहीं जानता
कितनी साँसें लिखी हैं
उसके भाग्य में |
आशा