17 मई, 2017
12 मई, 2017
बिल्ली
एक बिचारी
छोटी सी बिल्ली
न जाने कैसे
घर अपना भूली
भाई बहिन से बिछड़ी
भूखी फिरती
मारी मारी
म्याऊं म्याऊं करती
अपनी ओर
आकृष्ट करती
चूहों का लगता अकाल
या शिकार न कर पाती
उन्हें अभी तक
पकड़ ना पाती
अपनी क्षुधा मिटाने को
दूध ही मिल पाता
जब दूध सामने होता
उसकी आँखों में
चमक आजाती
जल्दी से चट कर जाती
अपनी भूख मिटाती
जब भी दूध नहीं मिलता
अपना क्रोध जताती
घर में आने की
कोशिश में
ताका झांकी करती
दूध यदि
खुला रह जाता
सारा चट कर जाती
किसी की निगाह
पड़ते ही
चुपके से दुबक जाती
अवसर की तलाश में रहती
दरवाजा खुला देख
भाग जाती
कभी दूध गरम होता
उसका मुंह जल जाता
क्रोधित हो फैला देती
जोर जोर से गुर्राती
अब तो वह
ऐसी हिल गई है
समय पर आती है
दूध ख़तम होते ही
मुंह अपना चाटती है
है सफाई की दरोगा
जाने कहाँ चली जाती है
जिस दिन वह ना आए
बहुत याद आती है |
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आशा
06 मई, 2017
जल की कमी जब हो
तप रही धरा
हुए लू से बेहाल
पर घर के काम
कभी न रुकते
सुबह हो या शाम
चिंता ही चिंता
लगी रहती
खाली पड़े घट
खाली पड़े घट
याद करते
फिर बावड़ी
रस्सी व गागर
रस्सी व गागर
इसके अलावा
कुछ न दीखता
चल देते कदम उस ओर
संग सहेली साथ होतीं
पता नहीं कब
वहाँ पहुँचते
सीढ़ियाँ उतरते
कभी थकते
कुछ देर ठहरते
गहराई में
जल दर्शन पा
मन में खुश हो लेते
जल गागर में भरते
कई काम
मन में आते
मन में आते
ठन्डे पानी में
पैर डालते
पर और काम
याद आते ही
भरी गागर
सर पर धर
सीधे घर की
राह पकड़ते
यह रोज का है
खेल हमारा
इससे कभी न धबराते
पर जल व्यर्थ न बहाते |
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पर जल व्यर्थ न बहाते |
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आशा
28 अप्रैल, 2017
आस अभी ज़िंदा है
जब साँझ का धुँधलका हो
मन कहीं खोया हुआ हो
सूचना होगी ऐसी
मन में उदासी भर देगी
पर हर वक्त का
नकारात्मक सोच
जीवन का सुकून हर लेगा
यदि दीप जलाने का मन ना हो
जान जाइए समय विपरीत हुआ है
बेमन हो दीप जलाया भी
कब तक बाती जलेगी
धीमी लौ होते ही
दीपक की पलकें झपकेंगी
बंद आँखों में झाँक कर देखिये
वहाँ कोई सपना सजा है
दीप बुझ भी गया तो क्या
कहीं जीवन में रस भरा है
यही अंदाज़ जीने का
आशाओं पर टिका है
जब तक साँस बाकी है
आशा का दीपक जल रहा है
दीप बुझ गया तो क्या
मन में आस अभी ज़िंदा है |
आशा
26 मार्च, 2017
प्राकृतिक अभियंता
तिनके चुन चुन
घरोंदा बनाया
आने जाने के लिए
एक द्वार लगाया
मनोयोग से
घर को सजाया
दरवाजे पर खड़े खड़े
अपना घर निहार रही
देख दस्तकारी अपनी
फूली नहीं समा रही
कभी आसपास उड़ती
बच्चे देख खुश होती
अचानक अनजानी आशंका
उसके मन में उपजी
कहीं कोई घर न गिरादे
बच्चों को हानि ना पहुँचाए
इसी लिए है सतर्क
दे रही सतत पहरा
पूरी सावधानी से |
आशा
23 मार्च, 2017
22 मार्च, 2017
बांसुरी कान्हां की
प्रश्न अचानक
मन में आया
राधा ने जानना चाहा
है यह बांस की बनी
साधारण सी बांसुरी
पर अधिक ही प्यारी क्यूं है
कान्हां तुम्हें ?
इसके सामने मैं कुछ नहीं
मुझे लगने लगी
अब तो यह सौतन सी
जब भी देखती हूँ उसे
विद्रोह मन में उपजता
फिर भी बजाने को
उद्धत होती
जानते हो क्यूं ?
शायद इसने
अधर तुम्हारे चूमे
उनका अमृत पान किया
तभी लगती बड़ी प्यारी
जब मैंने इसे चुराया
बड़े जतन से इसे बजाया
स्वर लहरी इसकी
तुम्हें बेचैन कर गई
की मनुहार कान्हा तुमने
इसे पाने के लिए
मैं जान गई हूँ
इसके बिना तुम हो अधूरे
यह भी अधूरी तुम्हारे बिना
चूंकि यह है तुम्हें प्यारी
मुझे भी अच्छी लगने लगी |
आशा
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