चहुँ ओर घिरे बादल
बरसा न एक बूँद पानी
जन-जन बूँद बूँद को तरसा
बेहाल ताकता महाशून्य में
यह कैसा अन्याय
कहीं धरा जल मग्न
कहीं सूखे से बेहाल
आखिर यह भेद भाव क्यों
क्यों नहीं दृष्टि समान
कहीं करते लोग पूजा अर्चन
बड़े-बड़े अनुष्ठान
कहीं उज्जैनी मनती
कहीं होते भजन कीर्तन
यह है आस्था का सवाल
हे प्रभु यह कैसा अन्याय
जल बिन तरस रहा
जनमानस का एक तबका
दूसरा करता स्वागत वर्षा का
दादुर मोर पपीहा करते आह्वान
वर्षा जल के आने का
कोयल मधुर गीत गाती
पास बुलाती अपने जीवन धन को
क्यों नहीं आये अभी तक
देती उलाहना प्रियतम को
धरा चाहती चूनर धानी
अपने साजन को रिझाने को !
आशा सक्सेना