09 अक्तूबर, 2017

पूनम का चाँद



शरद पूनम के चाँद सा मुखमंडल है 
उस पर स्निग्धता का भाव अनोखा है 
चन्द्र किरण की शीतलता का 
आनंद बहुत अनुपम है 
आनन पर मधुर मुस्कान है 
मौसम बड़ा हरजाई है 
काले लम्बे केशों की सर्पिणी सी चोटी 
कमर तक लहराई है 
हल्की सी जुम्बिश दी है उसने 
सरक कर चूनर मुख पर आई है 
ठंडक ने दस्तक दी है हल्की सी 
वायु के हलके से झोंके से 
नव ऋतु ने ली अंगड़ाई है 
दबे कदम शरद ऋतु आई है 
पौधों ने स्पर्श किया है 
पवन के इन झोंकों को 
उन्हें भी अहसास हुआ है 
इस परिवर्तन का 
हरसिंगार की पत्तियों पर 
ओस की बूँदें थिरक आई हैं 
नव चेतन की महक दूर से आई है 
खिली कलियाँ रात में 
फूलों पर बहार आई है 
शरद पूनम का चाँद देखा है जबसे 
निगाहों में उसकी ही छवि समाई है ! 


आशा  सक्सेना 





05 अक्तूबर, 2017

मधुर झंकार

एकांत पलों में 
जाने कब मन वीणा की 
हुई मधुर झंकार 
कम्पित हुए तार 
सितार के मन लहरी के 
पर शब्द रहे मौन 
जीवन गीत के !
जिसने जिया 
उदरस्थ किया उन पलों को 
जीने का मकसद मिल गया 
सुन उस मधुर धुन को ! 
थिरकन हुई कदमों में 
तारों के कम्पन से 
हर कण में बसी 
उत्साह की भावना 
रच बस गयी मन में 
जगा आत्म विश्वास 
उस पल पर टिका कर 
सफलता की सीढ़ी चढ़ी
अब वह जीता है 
उन्हीं पलों की याद में 
जो मुखर तो न हो सके 
पर रच बस गए 
उसके अंतस में ! 


आशा सक्सेना 





01 अक्तूबर, 2017

आज का रावण



हुआ प्रभात कुछ ऐसा 
हर व्यक्ति रावण हुआ 
दस शीश सब में हैं 
कुछ सद्बुद्धि से प्रेरित 
कुछ दुर्बुद्धि में लिप्त 
जब जिसका प्रभाव ज्यादह 
वैसा ही कर्मों का बोलबाला 
मद, मत्सर, माया में लिप्त 
अनुचित कार्य करने में प्रवीण 
आधुनिक रावण घूमते यहाँ वहाँ
समाज पर तीखा वार करने से 
वे नहीं चूकते हर बार 
इस वर्ष भी रावण दहन 
बुराइयों पर विजय पाने की कोशिश में 
बड़े जोश से किया गया दशानन दहन 
पर हुआ कितना कारगर 
एक रावण नष्ट हुआ तभी 
अन्य का हुआ जन्म 
रावणों की संख्या बढ़ रही 
दिन दूनी रात चौगुनी 
अनाचार ने सर उठाया 
अधिक बदतर आलम हुआ ! 


आशा सक्सेना 




27 सितंबर, 2017

उपवन का माली



है बागबान वह इस उपवन का 
किया जिसने समर्पित 
रोम रोम अपना 
इस उपवन को ! 
बचपन यहीं खेल कर बीता 
यौवन में यहीं कुटिया छाई ! 
हर वृक्ष, लता और पौधों से 
है आत्मीयता उसकी 
हर पत्ते से वह संभाषण करता 
उनसे अपना स्नेह बाँटता 
है उपवन सूना उसके बिना 
डाली डाली पहचानती स्पर्श उसका 
जब फलों की बहार आयेगी 
तब तक क्षीण हो चुकी होगी काया 
अपनी उम्र का अंतिम पड़ाव
वह पार कर लेगा 
मिट्टी से बनी काया 
मिट्टी में समाहित हो जायेगी 
लेकिन आत्मा उसकी उपवन में 
रची बसी होगी ! 
जब नया माली आयेगा 
उससे ही साक्षात्कार करेगा 
उपवन की महक 
जब दूर दूर तक पहुँचेगी 
अपनी ओर आकर्षित करेगी 
 उसकी यादें भूल न पायेंगे ! 
है वह अदना सा माली 
लेकिन यादें उसकी 
सदा अमर रहेंगी ! 



आशा सक्सेना


21 सितंबर, 2017

बहुरंगी हाइकू



माता की कृपा 
रहती सदा साथ 
मेरी रक्षक 

स्पर्श माता का 
बचपन लौटाता 
यादें सजाता 

माँ का आशीष 
शुभ फलदायक 
हो शिरोधार्य 

माँ की ममता 
व पिता का दुलार 
दिखाई न दे 

माँ की ऊँगली 
डगमगाते पाँव 
दृढ़ सहारा 

माता के साथ 
बालक चल दिया 
विद्या मंदिर 

जीवन भर 
कभी न करी सेवा 
अब श्राद्ध क्यों 

मन की पीड़ा 
बस पीड़ित जाने 
और न कोई 

सच में होता 
ऐसा ही परिवार 
सोचती हूँ मैं 


आशा सक्सेना 


17 सितंबर, 2017

अनुरागी मन



है सौभाग्य चिन्ह मस्तक पर
बिंदिया दमकती भाल पर
हैं नयन तुम्हारे मृगनयनी
सरोवर में तैरतीं कश्तियों से
तीखे नयन नक्श वाली
तुम लगतीं गुलाब के फूल सी
है मधुर मुस्कान तुम्हारे अधरों पे
लगती हो तुम अप्सरा सी
हाथों में रची मेंहदी गहरी 
कलाई में खनक रहे कंगना 
कमर पर करधन चमक रही 
मोह रहा चाँदी का गुच्छा 
पैरों में पायल की छनक 
अनुरागी मन चला आता है 
दूर दूर तक तुम्हें खोजता 
छोड़ नहीं पाता तुम्हें !



आशा सक्सेना




11 सितंबर, 2017

जीवन संगीत


जब स्वर आपस में टकराएँ 
कर्कश ध्वनि अनंत में बिखरे 
पर जब स्वर नियमबद्ध हो 
गुंजन मधुर हो जाए !
यही मधुरता 
गूंजने लगे चहुँ दिशि
मन में मिश्री घुल जाए 
और पूर्ण कृति हो जाए ! 
मनोभाव शब्दों में उतर कर 
कुछ नया सोच 
दिल को छुए 
मधुर संगीत का हो सृजन 
उदासी आनंद में बदल जाए ! 
प्यार, प्रेम का जन्म हो 
अद्भुत पलों का हो अहसास 
जीवन में संगीत ही संगीत हो 
हर पल, हर लम्हा 
संवर जाए ! 

आशा सक्सेना