17 मार्च, 2019

वह दिन जरूर आएगा







वह दिन जरूर आएगा
तुम  हमें न भूल पाओगे
किस्से देश प्रेम के 
 जब भी  दोहराए जाएंगे   
देश से मोहब्बत के फसानों में
 हमारा नाम आएगा
 जितनी भी कोशिश  कर लो
हमें न भूल पाओगे
किताब के पन्ने में
हमारा नाम लिखा जाएगा
हमारा प्यार रंग लाएगा
प्यार की होली न जलेगी
नफरत होगी  अलविदा
हमारा प्यार होगा बेमिसाल
 भाईचारे की ओर बढ़ता कदम
 है  आवश्यकता बहुत
वर्तमान  युग में सौहार्द की
इसी कमी को दूर कर
नया भारत बनेगा शक्तिसंपन्न
अलग अलग विचारों से
तकरार बढ़ती है
 होता यही  अलगाव का कारण  
समान विचारों से दिलों की
 दरारें मिटती हैं
होते एक समान विचार जब
सभी योजनाएं होती सफल
जब सफलता की पायदान चढ़ेंगे
तभी प्रजातंत्र में निखार आएगा
सच्चा जनतंत्र नजर आएगा | 
                                                                            आशा

16 मार्च, 2019

होना न मगरूर








होना न मगरूर
जब भी कोई बड़ी
 उपलब्धि पाओ
हो एक आम आदमी
 जमीन से जुड़े हुए
यह न जाना भूल
यदि पंख फैलाए
 उड़ने के लिए
गिर जाओगे जमीन पर
चाटते रह जाओगे धूल
अपना अस्तित्व खो बैठोगे
दिल में चुभेंगे शूल
जो देंगे पीड़ा असीम
सह्न न कर  पाओगे उसे
रोम रोम होगा दुखी
उस दर्द  को  न सह पाओगे
एक गलत कदम
 होता कितना कष्टकर
 न जाना उधर भूल
अस्तित्व से सुलह  न की यदि  
टूट जाओगे बिखर कर
गरूर चूर चूर होगा
यदि सोच कर भ्रमित हुए
                                       और हुए मगरूर |

14 मार्च, 2019

जब याद तुम्हारी आएगी




                                       विरहन सोच रही मन में
विचारों में खोई खोई
याद तुम्हारी जब भी आएगी  
हर बार कोई समस्या आएगी 
वह अकेले न रह पाएगी 
क्यूँ समझ में न आ पाएगी 
है ऐसी कैसी उलझन 
जो हल न हो पाएगी
  यूँ तो 
यादों में खो जाना 
बड़ा प्यारा लगता है 
 प्यारा सा एहसास
 
जागृत  होने लगता है
पर कब मुसीबत बढ़ जाएगी
सब को कैसे समझाएगी 
सब की नजरों में  तो न गिर जाएगी 
अभी दीखती बहुत लुभावनी
क्या होगा जब
जब विरह वेदना बढ़ जाएगी
 दिल से न जा पाएगी 
बारम्बार समीप  आकर
 चैन लूट ले जाएगी 
मुझ पर हावी हो
   मुझे बहुत  सताएगी 
मेरे आकर्षण की शक्ति
 क्षीण होती जाएगी 
तुम्हारा नहीं आना
बेचैन मन को न रास आएगा
दृष्टि  दरवाजे पर टिकी रहेगी  
अलगाव फीका न  हो पाएगा 
विरही मन है कितना आकुल
यह सबको कैसे समझाएगी |
आशा

13 मार्च, 2019

यादें

यादों को दूर न कर पाईं
सारी रात करवटें बदलती रहीं
जब भी कोशिश की
और अधिक नजदीक आईं
मुठ्ठी में जब कैद किया
हाथों से फिसलती गईं
रिक्त हुए जब हाथ
केवल हथेलियों पर
मिट्टी चिपकी रह गई
मन को हुआ संताप
ऐसे कैसे यादें बह गई
पर थी वे  एक ख्याल
कैसे रुक जातीं
जरासी जगह काफी थी
आने जाने के लिए
या दिल में समाने के लिए
जब किसी ने बरजा
शब्दों का न मिला साथ
मन के भाव स्पष्ट न कर पाई
खुद में सिमट कर रह गई
यादें तो यादें है
जाने कब बापिस आजाएं
वह आखें मूंदे रह गई
सारे दर्द सहती गई
कभी विद्रोही दिल न हुआ
यादें जैसी थीं वैसी ही रहीं 
कभी धुंधली हो जातीं  
कभी बहुत गहरी हो जातीं
आशा

11 मार्च, 2019

आँखें

-
तेरी निगाहें हैं झील सी  गहरी
                                                             गहराई को  नापा नहीं जा सकता
                                                            प्रीत से लवरेज हैं वे
                                                         नजर अंदाज नहीं कर सकता
                                                        जरासी बात पर छलक जाती है
आंसू हैं अनमोल मोती से
उन को तोला नहीं जा सकता
है अजब सी कशिश उनमें
वही है विशेषता उन दौनों की
भोलापन उनसे छलकता
ना ही कोई दुराव न छल कपट
  सीधी सादी हैं  दोनों
 वे आइना   दिल की  
जो सच है उसी का साथ देती हैं
तभी तो उन पर सदा
मर मिटने को जी चाहता है
शबनमी अश्रुओं को
चूमने को दिल चाहता है
उनमें कोई परिवर्तन न होता 
जैसे हैं वैसे ही रहें
यही मेरा मन भी चाहता  |
आशा