17 सितंबर, 2019

सजदे





केवल सजदे करने से
 कुछ भी हांसिल नहीं होता
सजदे होते सहायक
कार्य को सफल बनाने में
जो पूरी शिद्दत से किया जाए
जरा सी भी  कमीं उसे
 पूर्ण नहीं होने देती
कुछ तो यत्न करने होंगे
उसे   सफल बनाने के लिए  
केवल सजदे तो कम करो
पर बुद्धि एकाग्र करो
सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी
कामयाबी सर आँखों पर रखेगी
प्रयत्न सफल नहीं होते
केवल प्रभू में खो जाने से
बार बार सजदे करने से
वे होते हैं सहायक तभी
जब प्रयत्न किये जाते
 पूरी एकाग्रता से
धनुर्धर अर्जुन के निशाने की तरह 
 सच्ची आस्था ईश्वर पर रख कर |
आशा

14 सितंबर, 2019

गुलाब जैसा कोई नहीं


बगिया में हैं पुष्प अनेक
पर गुलाब सा कोई नहीं
हर फूल में महक अपनी है
पर गुलाब सी किसी में नहीं |
खूबसूरत गुलाब है कोई 
रक्षक कांटे संग लिए है
रंग रूप बहुत निखरा है
फिर भी खुशबू उस जैसी नहीं |
कहलाता राजा फूलों का 
जानना चाहोगे क्यों?
है वह गुणों की खान 
उस जैसा कोई नहीं |
आशा

अभिव्यक्ति





सोच विचार होते
अभिभावक अभिव्यक्ति के
शब्दों के संग खेलती  बड़ी होती
वय होते ही परिपक्व हो
 अधिक प्रखर हो जाती
शब्द चाहे हों जिस भाषा के
उनसे  बंध कर पींगे बढाती
ऊंचाई जब तक छू न लेती
मन को चैन न लेने देती
सोच बहुत पीछे रह जाते
अभिव्यक्ति का साथ न दे पाते
थक कर विश्राम करना चाहते
वह कहती  अभी लक्ष्य दूर है
उसे पा लेना मेरा जूनून है
क्या मेरा साथ यूँ ही छोड़ दोगे
आधा रास्ता  पार कर लिया है
फिर अब क्यूँ न आगे जाएं
उसकी दृढ इच्छा शक्ति के आगे
मानी हार अभिभावकों  ने
दिया हौसला पूरे मन से
अपनी अभिव्यक्ति को
भाषा को समृद्ध बनाने में |
आशा   

10 सितंबर, 2019

याद करोगे मुझको




याद करोगे हमको
जब हम ज़माना 
छोड़ जाएंगे
सारी बुराई भूल कर
 जब भी सोचोगे
हर शब्द कानों में गूंजेगे
अपने गुम हुए अस्तित्व की
हरबार याद दिलाएंगे
मन के किसी कौने में
जब भी झांकोगे
हम ही हम नजर आएँगे
है यही रीत दुनिया की 
जीते जी कद्र नहीं होती 
जाने के बाद ही यादें 
ताजी की जाती हैं 
बड़ी बड़ी अच्छाई
याद की जाती हैं |

आशा

खामोशी










दूर तक फैला सन्नाटा
सड़क पर कोई  नहीं  आता नजर
यह है   आतंक  का प्रभाव
या  मन में दहशत  का प्रतिफल
सहमें हुए  शब्द मौन हुए 
 बिखरे हैं मुंह में पर   निशब्द
 ओठों तक आ नहीं सकते
दहशतगर्दी इस हद तक पसरी  
श्वास लेना भी हुआ दूभर
रीते नयन तलाश रहे 
बिछुड़े हुए अपनों को
आसपास घरों में भी
 है खामोशी का आलम
जहां रहती थी सदा
 चहलपहल बचपन की
आम  आदमी  सहमा हुआ  है
पर चाहत है अमन चैन की
खामोशी में घुटन होती है
आखिर कब तक इसे सहन करेगा
सामान्य जन जीवन होगा
आपस में भाई चारा पनपेगा
खून खराबा समाप्त होगा |
 आशा

09 सितंबर, 2019

बहुत याद आओगे




गुलाब के फूल
 जब भी खिलेंगे 
 तो बहुत याद आओगे 
इतनी आसानी से
 मुझे न भूल पाओगे 
मैं कोई महक नहीं 
जो वायु के संग बह जाऊं 
हूँ तुम्हरे रंग में रंगी 
खुशबू में सराबोर 
है मेरा भी वजूद 
कहीं खोया नहीं 
पर तुम्हारे बिना
 कोई मेरा नहीं 
तुमसे ही महकेगी 
बगिया मेरी 
जब भी फूल खिलेंगे 
तो याद आओगे |
आशा