उसने दिल का दामन बचाया कहाँ है
प्रभू से कुछ भी नहीं चाहा है
मोहब्बत का फलसफा सुलझाया कहाँ है |
अभी तो हाथ जोड़े हैं नमन किया है
मंदिर में भोग लगाया कहाँ है
अभी तो स्वच्छता की है मंदिर की
बुझते दीपक को जलाया कहाँ है |
दी है परीक्षा प्रभु के समक्ष
नतीजे की अपक्षा को छिपाया कहाँ है
वह भी राह देख रहा है
ईश्वर को भोग चढ़ाया कहाँ है |
है मन
के भावों की पारदर्शिता आवश्यक
उसने किसी को झुटलाया कहाँ है
प्यार प्रेम वह नहीं जानती
उसने मन के भावों को छिपाया कहाँ है |
आशा
आशा