बचपन के वे दिन
भुलाए नहीं भूलते
जब छोटी छोटी बातों को
दिल से लगा लेते थे |
रूठने मनाने का सिलसिला
चलता
रहता था कुछ देर
समय बहुत कम होता था
इस फिजूल के कार्य के लिए |
जल्दी से मन भी जाते थे
कहना
तुरंत मान लेते थे
तभी तो नाम रखा था
सब
ने “यस बॉस” हमारा |
किसी बात पर बहस करना
आदत में शामिल नहीं था
सब का कहना बड़ी सरलता से
बिना नानुकुर के स्वीकार्य होता था |
पर जैसे जैसे उम्र बढ़ी
अहम् का जन्म हुआ
क्यूँ ?क्या? किसलिए?का
सवाल हर बार मन में उठता है |
इतना सरल स्वभाव अब कहाँ
इसी लिए तो हर बार
उलझन से बच निकलने के लिए
बचपन
के वे दिन याद आते हैं |
कभी भूल नहीं पाते
बचपन
का वह भोलापन
बड़े प्यार से सब के साथ
मिलजुल कर रहने की साध |
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आशा