इस छोटी सी जिन्दगी में
बड़ी विषमता देखी
बचपन और जवानी में |
युवावस्था आते ही
भोला बचपन तिरोहित हुआ
दुनियादारी में ऐसा उलझा
परिवर्ता आया व्यक्तित्व में |
बचपन में था हंसमुख चंचल
अब ओढ़ी गाम्भीर्य की चादर
खुद का व्यक्तित्व किया समर्पित
दुनियादारी की इस दौड़ में |
युवावस्था भी बीत चली
जब दी दस्तक वृद्धावस्था ने
अंग हुए शिथिल थकावत ने आ घेरा
पहले जैसी चुस्ती फुर्ती अब कहाँ |
फिर से आया परिवर्तन अब
देखी एक बड़ी समानता
बचपन और वृद्धावस्था में
हर बात पर जिद्द करना
कई बार कहने पर एक बार सुनना
कई बार कहने पर एक बार सुनना
हर समय मनमानी करना |
कथनी और करनी में आया बड़ा अंतर
मन की बात किसी से न कही
अन्दर ही मन में घुटते रहे
परेशानी न बांटी किसी से अंतर्मुखी हुए |
पराश्रित हुए हर छोटे से कार्य के लिए
बचपन की तरह जिए
बचपन की तरह जिए
अकेले ही जीवन की गाड़ी
खींच रहे
बड़ी समानता देखी है यही |
बचपन बीता खेलकूद में
अब अकेले ही उलझे हुए हैं
अपनी समस्याओं के भ्रमर जाल
में
कोई ऐसा न मिला
जो समझे मनोभावों को |
वे क्या चाहते है ?
कैसे समय बिता सकते हैं ?
कहाँ तो बाहरी दुनिया में थे सक्रीय
अब हुए निष्क्रीय |
बड़ी समानता लगती है
बचपन में और बढ़ती उम्र में
जरासी बात पर नाराज होना
फिर जल्दी से न मनना
हुए हैं लाइलाज कोई नहीं समझ पाया
|
आशा