23 अगस्त, 2020

अनुपम कृति







हो आफताव या किसी का नूर हो
या जन्नत की कोई अजनबी हूर हो
तुम्हें देख कर जो निखार आता है चहरे पर
उससे मुंह फेर  मुकरा नहीं जा सकता
तुम तो सदाबहार गुलाब का पुष्प हो |
तुमसे अनुपम कौन है कोई समानता नहीं  तुमसे  
किसकी है हिमाकत जो निगाहें उठाकर देखे तुम्हें
हो तुम गुणों की टोकरी कोई ईर्ष्या क्यूँ कर करे
है आवश्यकता  उसे तुमसे शिक्षा लेने की
न कि तुम्हें उलहाना देने की|
हो तुम अनुपम कृति इस धरा पर जिस घर की
हो गया निहाल जिसकी हो अनुकृति  तुम ही 
ईश्वर ने  मुक्त हस्त से दिया उसे तुमसा तोहफा
उसने भी सहेजा तुम्हें  जी भरकर पूरे मनोयोग से |  

आशा

     


21 अगस्त, 2020

पारिजात के पुष्प






हो तुम  खुशबू का खजाना
    दिया जो उपहार में
इस प्रकृति नटी ने तुम्हें
 सवारने सहेजने के लिए |
दी अपूर्व सुन्दरता हर एक पंखुड़ी में  
श्वेत रंग दिया भरपूर
नारंगी रंग की  डंडी ने 
अद्भुद निखार लाया है|
जब धरती पर
 पुष्प  झर झर झरे
 मंद मंद हवा बहे  
एक अनूठी सैज सजे  
पारिजात वृक्ष के तले |
जागा अदभुद एहसास
उस पर कदम पड़ते ही
 मन को सुकून आया है
देखी तुम्हारी बिछी श्वेत चादर
कितने जतन किये थे मैंने
तुम्हारे रूप को सजाने में |
हो तुम श्वेत सुन्दर अनुपम कृति
ईश्वर प्रदत्त उपहार में हमें
रोज चढ़ाए जाते 
पुष्प प्रभु के चरणों में
 महकता मंदिर का आँगन
 अनुपम सुगंध से है जो  है  प्रिय
 हमें और हमारे आराध्य को
आशा  

19 अगस्त, 2020

उसे तो आना ही है |







                                                              मुडेर पर बैठा कागा
याद किसे करता
शायद कोई  आने को है
दिल मेरा कहता |
जल्दी से कोई चौक पुराओ
आरते की  थाली सजाओ
किसी को आना ही है
मन मेरा कहता |
तभी तो आती  हिचकी
रुकने का नाम नहीं लेती
फड़कती आँख
 शुभ संकेत देती|
कह रहे सारे शगुन 
द्वार खुला रखना 
ढेरों प्यार लिए 
कोई आने को है |
हैं क्या ये  संकेत ही 
या मन में उठता ज्वार 
कितने सही कितने गलत 
 आता मन में विचार |
आशा


आराधना


प्रति दिन नैवेद्ध चढ़ाया
 आरती की दिया लगाया
घंटी बजा कर की आराधाना   
किया नमन ईश्वर को मन से   |
पर शायद ही कभी जांचा परखा 
 कितनी सच्ची आस्था है मन में
 या  मात्र औपचारिकता निभाई है
दैनिक आदतों की तरह जीवन में |
दे रहे धोखा किसे ईश्वर को या खुद को
इतने समय भक्ति भाव में डूबे रहे  
पर आस्था ने अपना रंग न जमाया  
मन का भार उतर ना पाया |
ईश्वर अपनी अदृश्य दृष्टि से
 समदृष्टि से देख रहा है सब को
 कोई और न मिला जो समझे समझाए  
ईश्वर की इस अदृश्य लीला को |
किया जिसने विश्वास प्रभू पर सच्चे मन से
उसका  ही बेड़ा पार हुआ
भवसागर के इस  भवर जाल  से
पहुंचा उसपार किनारे बिना किसी  बाधा के  |
आशा