हो तुम महनतकश कृषक
तुम अथक परिश्रम करते
कितनों की भूख मिटाने के लिए
दिन को दिन नहीं समझते |
रात को थके हारे जब घर को लौटते
जो मिलता उसी से अपना पेट भर
निश्चिन्त हो रात की नींद पूरी करते
दूसरे दिन की फिर भी चिंता रहती |
प्रातः काल उठते ही
अपने खेत की ओर रुख करते
दिन रात की मेहनत रंग लाती
जब खेती खेतों में लहलहाती |
तुम्हारा यही परीश्रम यही समर्पण
तुम्हें बनाता विशिष्ट सबसे अलग
हो तुम सबसे भिन्न हमारे अन्न दाता|
आशा