03 दिसंबर, 2020

कृषक


हो तुम महनतकश कृषक

 तुम अथक परिश्रम करते

कितनों की भूख मिटाने के लिए

दिन को दिन नहीं समझते |

रात को थके हारे जब घर को लौटते

जो मिलता उसी से अपना पेट भर

निश्चिन्त हो रात की नींद पूरी करते

दूसरे दिन की  फिर भी चिंता रहती |

प्रातः काल उठते ही

अपने खेत की ओर रुख करते

दिन रात की  मेहनत रंग लाती 

जब खेती खेतों में लहलहाती |

तुम्हारा यही परीश्रम यही  समर्पण

 तुम्हें बनाता विशिष्ट सबसे अलग

हो तुम  सबसे भिन्न हमारे अन्न दाता|

आशा

 

01 दिसंबर, 2020

कुछ असंभव नहीं


कभी शिकवा न किया

किसी से शिकायत नहीं की

फिर भी सभी ने दोष दिया

जरूर कुछ तो किया होगा |

जब अपनी बात कहना चाही

जितनी भी कोशिश की

किसी ने न मानी

सभी यत्न  व्यर्थ  हुए |

कहने को तो यही रहा

जो किया ठीक न किया

सच  यही है किसी ने

सही गलत का  भेद बताया  नहीं |

अनजाने में की गलतियां  भूल नहीं होतीं

 सुधारी जा  सकती हैं हालात से समझोता होता है

वह  एक सीमा तक तो  है संभव

पर असम्भव नहीं |

आशा

 

 

 

 

28 नवंबर, 2020

नीला फूल



आँगन में एक फूल खिला जो  

जंगल से अस्वीकारा गया  

है रंग रूप इतना सजीला  

मन को मोह रह |

 रंग नीला है  उसका  आसमान सा

प्याले सा  दिखाई देता है

लगता है चाय छान लूं उसमें

अधरों से लगालूँ उसको |

जब मिठास मस्तिष्क में घुल जाए

 मन  से सहेजूँ उसे

बरसों बरस याद रखूँ मिठास को 

भुला नहीं पाऊं |

आशा

 

27 नवंबर, 2020

मैं मानव हूँ


 


                                      मैं मानव हूँ दानव नहीं

सम्वेदनाओं से भरा हुआ हूँ

मुझे भी कष्ट होता है

किसी को व्यथित देख |

व्यथा का कारण जान  

अनजान नहीं रह सकता

हल उसका खोज कर

कुछ तो सुकून दे ही  सकता हूँ |

मेरी भूलों पर होता है

  पश्च्याताप मुझे भी

दोष निवारण के लिए प्यार बांटता हूँ

सब से अलग  नहीं हूँ  |

मैं मनुज हूँ पाषाण नहीं 

हर समस्या को समझता हूँ

 निदान की कोशिश भी करता हूँ 

हार मान नहीं सकता |

आशा