5सीमा वर्णिका and 4 others
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वह दिन भी गुजरा बेचैनी में
कोई खबर न आई वहां
से
लंबा समय बीता था जहां
अब कुछ नहीं रहा वहां
सिवाय बुरी खबरों के |
अब अखवार के
सारे पृष्ट भरे होते
प्रारम्भ से अंत तक
होती जन धन की हानि से |
कभी प्राकृतिक आपदाओं
के आगमन से
कभी मानव जन्य
प्रकृति
के अति दोहन से |
मन दुखित होता है
ऐसे हादसों की जानकारी से
मन की रौशनी बुझ जाती है
बुद्धि कुंद हो जाती है
साथ नहीं देती |
हम भी यदि होते वहां
हम होते न होते
क्या हाल होता हमारा |
मैं हूँ आत्म केन्द्रित
सब की सोच नहीं पाती
केवल खुद तक ही
सीमित होकर रह जाती |
जब भी कोई बुरी
घटना
सुनाई देती है
उसी में उलझी रहती हूँ
कुछ भी अच्छा नहीं लगता
बेचैनी बढ़ती जाती है |
आशा
१-है अभिलाषा
किसीके काम आऊँ
रहूँ सफल
२-आशा या इच्छा
कभी पूर्ण न होती
रहती आधी
३-लगता मीठा
रस भरी बातों से
प्यार जताना
४-तानों में रहा
झलकता प्यार है
दिखी ममता
५-प्यार दुलार
कहाँ रही है कमी
बेरुखी क्यों
६- अच्छा लगता
व्यवहार तुम्हारा
दिल जीतता
७-अंधेरी रात
हलकी बरसात
दिल खुश है
८- झूल रही मैं
रहती दुविधा में
क्या किया जाए
९-उड़ान भरी
अधर में अटकी
पंख उलझे
आशा