16 जुलाई, 2021

समा सावन का


                                                                 धूप छाव में जंग छिड़ी 
                                                      आदित्य किरणों की चमक दिखी 
                                                             कभी काली  धटाएं   छाईं  
                                                                     हुआ आसमां स्याह |
                                                                    याद आई उस सावन की 
                                                                         मंहदी कजरी तीज की 
                                                                   इन्तजार रहता था तब 
                                                                     अम्मा के बुलावे का |
                                                       सतरंगा लहरिया लाई बूंदी से 
                                                            पहन ओढ़ सजी सवारी थी 
                                                               तीज पूजने के लिए 
पहनी धानी चूनर ऊपर से |
याद आया वो नीम का पेड़ 
                                                         | झूला किया गया तैयारजिसकी डाली पर 
                                                              रस्सी पटरी मंगवाई बीकानेर से 
                                                           खूब झूलने का मजा लिया था  |
                                       झूले पर पेंग बढ़ाना याद रहा

                                    गाई कजरी ढोलक की थाप पर

सहेली बरसों बाद मिली थी

 ठुमके लगाए थे  जम कर |

उस मौसम की रंगीन फिजा

 फिर बापस न आई

पर यादों में जगह उसने गहरी बनाई  

बारम्बार उस सावन की यादें  नयनों में बसी रहीं| 

आया सावन झूम के रिमझिम 

मन डोला मेरा यह देख कर 

 बूंदे टपक रहीं धरा पर 

झूल रही गौरी झूले  पर |

आशा 


 
Shared with Public
Public


|


15 जुलाई, 2021

सात रंगों में सिमिटी सृष्टि



                                     सात रंगों  में सिमटी सृष्टि 

आज प्रातः काल व्योम  में देखा

एक आकर्षक  सतरंगा इंद्र धनुष 

था इतना बड़ा कि छूने लगा

सड़क  के दोनो किनारों  को |

पर प्रमुख रंग दीखे पांच ही

सोचा दो रंग कहाँ खो गए

यह धनुष कहलाता सतरंगा है

 पर छिपना उन दो रगों की आदत है  |

उनकी लुका छिपी देख मन हुआ  प्रफुल्लित    

काफी देर तक वह  नीलाम्बर  में  दिखाई दिया

फिर लुप्त हो कर रह गया पर आँखों में सजीब हुआ      

अपनी छवि यादों में छोड़ गया |

ये सात रंग हैं सृष्टि की अनमोल धरोहर 

हर जगह दिखाई देते दुनिया रंगीन बनाते 

जहां भी आकर्षण  दीखता 

इनकी ही उपलब्धि  होता |

आशा 

 

14 जुलाई, 2021

अपेक्षा तुमसे


 

मैंने कब तुमसे अपेक्षा रखी

 बिना किसी प्रलोभन के

दिन रात आराधना तुम्हारी की

बदले में कभी  कुछ चाहा नहीं  |

तब भी तुमने

 एक न सुनी  मेरी 

एकबार  भी तुम 

अरदास सुन न पाए मेरी |

मन में विचार  भी  आया 

 क्या कोई मांगे तभी

तुम्हारी नजर होगी उस पर 

मेरा  विश्वास  डगमगाया है |

यह कहना  है ही  झूठा

“बिन मांगे मोती  मिले

 मांगे मिले न भीख “|

बिना मांगे  किसी को 

 कुछ भी नहीं मिलता

अब मन नहीं होता

 किसी बात पर विश्वास का |

आशा

12 जुलाई, 2021

मुक्तक


 

                                   १-कोई नहीं   अपेक्षा    तुम  से  

  साथ कभी ना  छूटे   उससे

 समय   नहीं  हो   पाया  जिसका

कोई  सार न   निकला  उसका |

  

 २-   उसे अपनी बाहों में   छिपाया   

अपना प्यार उसपे लुटाया 

  तुमसे   बड़ा रखे  वो लगाव 

कभी न हो   उससे  अलगाव  |  


३-प्यार की दरकार नहीं मुझे  

हमें कभी कोई करे ना प्यार  

हम तो खुद से करते प्यार 

मिलावट नहीं  स्वीकार मुझे |


4- धुआँ सा  फैला  व्योम में 

नक़ल किसी की करता 

अपनी आँखों में जल भर के  

धरती को नम करता |

आशा 





\

10 जुलाई, 2021

नारी --"एक अपेक्षा तुमसे"


                                                                तेरा जलवा है ही  ऐसा

निगाहें टिकती नहीं

तेरे मुखमंडल पर

फिसल जाती हैं उसे चूम कर |

कितनी बार कहा तुम से

अवगुंठन न हटाओ अपने आनन से

कोई बचा न पाएगा तुम्हे

जमाने की बुरी नजर से |

कब तक कोई बचाएगा तुम्हे

दुनीया की भूखी  निगाहों से

किसी की जब निगाहें  

  भूखे शेर सी तुम्हें खोजेंगी|

तुम मदद की गुहार करोगी  

 चीखोगी चिल्लाओगी सहायता के लिए  

पर कोई भी सुन न पाएगा

जब तक खुद सक्षम न होगी |

आज के युग में कमजोरी का लाभ 

 सभी उठाना चाहते हैं  

 दुनीया का सामना करना होगा

तभी सर उठाकर जी पाओगी |

हो आज की सक्षम नारी

यह कहना नहीं है मुझे  

केवल इशारा ही काफी है

 बताने की आवश्यकता नहीं है |

सर तुम्हारा  गर्व से उन्नत होगा

आनन दर्प से चमक  जाएगा  

सफलता कदम चूमेगी तुम्हारे

हो आज की नारी कमजोर नहीं  हो | 

घूंघट हटे न हटे पर 

चहरे पर आव रहे 

नयनों  में हो  शर्म लिहाज 

है यही अपेक्षा तुमसे  |

आज भी हो सक्षम और सफल 

कल होगी और अधिक हिम्मत 

किसी से न भयभीत हो

 दृढ़ कदम हो समाज में जी पाओगी |

आशा

09 जुलाई, 2021

सौंधी सी खुशबू मिट्टी की


आसमान में घिर आए 

काले मेघ लगे  सुहावन

मंद बेग से हवा चली

 वर्षा  की झड़ी  लगी  |

आसपास की बगिया की 

सोंधी महक मिट्टी की आई

 पौधों ने किया स्वागत हरियाली का 

 दिल का कौना कौना  हरषाने लगी 

 शिद्दत से रहा था  इंतज़ार

 सावन के आने का 

बागों में हरियाली छाने का

झूले पर पैंग बढाने का |

सारी सहेलियां एकत्र हुई 

ढोलक बजने लगी अंगना  में 

कजरी गीत गाने लगीं  समूह में 

 स्वरों  की गूँज उठी व्योम में |

मोरों  की थिरकन दिखी बागों में 

पपीहे की स्वर लहरी सुनी 

कोयल की मधुर तान भी पीछें न  रही 

पूरा पर्यावरण हुआ संगीतमय |

                                    थी  एक विरहण ही  उदास 

सड़क पर टकटकी लगा देखती 

 बैठी बात जोहती 

अपने प्रियतम के आगमन की |

हलकी सी आहट  से भी हो बेचैन 

 निगाहें टिकी रहतीं दरवाजे पर 

सोचती कारण बिलंब का 

एक कागा आ बैठा दीवार पर |

दीवार पर बैठे कागा की 

 आवाज सुनी जब   

उसके आगमन की पूर्व सूचना जान   

खुशी समेट  न पाती |

हरी भरी घरती सावन में 

जीवन्त नजर आती 

मन में  खुशी न समाती

 प्रियतम के आने की |

आशा 




















\





 

 

08 जुलाई, 2021

सूना सारा जग लगे

                                         सूना सारा  जग लगे

तेरे बिना मन उसका भागे  

भीगे चंचल  स्वभाव

 नन्हीं बारिश की बूंदों में |

है यह  कल्पना मात्र

या किसी का ऐसा  झुकाव

 पैदा हुआ जो आकर्षण से

या पहली दृष्टि  के प्यार से |

एक ही  विशेषता रही यहाँ  

कोई झाँक  न सका उसे चिलमन से

एक तरफा लगाव रहा अवगुंठन में

बचा रहा  दुनिया की काली नजरों से |

वह खुश हुआ यह जान कर 

किसी ने ध्यान न दिया ऐसे लगाव पर

बात परदे में ही छुपी रह गई

दुनिया में रुसवाई न हुई |

आशा