१-कहना क्या है
क्या फायदा उसका
कुछ तो करो
२-गाँव की गोरी
सर पर कलश
लेकर चली
३-कविता गूंजी
जन जन ने पढी
मैं जीत गई
४-मेरा लेखन
उलझा न सुलझा
किसके लिए
५-सहयोग की
जरूरत नहीं है
किसी के लिए
क्या फायदा उसका
कुछ तो करो
२-गाँव की गोरी
सर पर कलश
लेकर चली
३-कविता गूंजी
जन जन ने पढी
मैं जीत गई
४-मेरा लेखन
उलझा न सुलझा
किसके लिए
५-सहयोग की
जरूरत नहीं है
किसी के लिए
डाल दिया स्नेह उसमें
बिन बाती स्नेह रह न पाया
अस्तित्व अपना खोज न पाया दीपक में |
जब माचिस जलाई पास जाकर
बाती ने लौ पकड़ी स्नेह पा
वायु बाधा बनी लौ कपकपा कर सहमी
पर अवरोध पैदा न कर पाई |
आत्म विश्वास था इतना प्रवल लौ में
कभी डिगने का नाम न लिया
ना हारी की लड़ाई बहुत शिद्दत से
दीपक की हिम्मत बढ़ाई स्नेह ने |
एक प्रश्न फिर भी उठा मन में
क्या किसी साधन की कमी से
दीपक जल पाएगा कभी
आवश्यक संसाधन बने हाथ उसके |
सब ने बराबर से सहयोग किया
दीपक के हाथों को मजबूत किया
यही सौहाद्र बना सफलता का कारक
दीपक न डरा वायु के बेग से|
वायु की उपस्थिती में लौ का नृत्य देख
हुआ नाज स्वयं पर और
अपने सह्योगिओं के सहयोग पर |
आशा
गाई कजरी ढोलक की थाप पर
सहेली बरसों बाद मिली थी
ठुमके लगाए थे जम कर |
उस मौसम की रंगीन फिजा
फिर बापस न आई
पर यादों में जगह उसने गहरी बनाई
बारम्बार उस सावन की यादें नयनों में बसी रहीं|
आया सावन झूम के रिमझिम
मन डोला मेरा यह देख कर
बूंदे टपक रहीं धरा पर
झूल रही गौरी झूले पर |
आशा
सात रंगों में सिमटी सृष्टि
आज प्रातः काल व्योम में देखा
एक आकर्षक सतरंगा इंद्र धनुष
सड़क के दोनो किनारों को |
पर प्रमुख रंग दीखे पांच ही
सोचा दो रंग कहाँ खो गए
यह धनुष कहलाता सतरंगा है
पर छिपना उन दो रगों की आदत है |
उनकी लुका छिपी देख मन हुआ प्रफुल्लित
काफी देर तक वह नीलाम्बर में दिखाई दिया
फिर लुप्त हो कर रह गया पर आँखों में सजीब हुआ
अपनी छवि यादों में छोड़ गया |
ये सात रंग हैं सृष्टि की अनमोल धरोहर
हर जगह दिखाई देते दुनिया रंगीन बनाते
जहां भी आकर्षण दीखता
इनकी ही उपलब्धि होता |
आशा
मैंने कब तुमसे अपेक्षा रखी
बिना किसी प्रलोभन के
दिन रात आराधना तुम्हारी की
बदले में कभी कुछ चाहा नहीं |
तब भी तुमने
एक न सुनी मेरी
एकबार भी तुम
अरदास सुन न पाए मेरी |
मन में विचार भी आया
क्या कोई मांगे तभी
तुम्हारी नजर होगी उस पर
मेरा विश्वास डगमगाया है |
यह कहना है ही झूठा
“बिन मांगे मोती मिले
मांगे मिले न भीख “|
बिना मांगे किसी को
कुछ भी नहीं मिलता
अब मन नहीं होता
किसी बात पर विश्वास का |
आशा
१-कोई नहीं अपेक्षा तुम से
साथ कभी ना छूटे उससे
समय नहीं हो पाया जिसका
कोई सार न निकला उसका |
२- उसे अपनी बाहों में छिपाया
अपना प्यार उसपे लुटाया
तुमसे बड़ा रखे वो लगाव
कभी न हो उससे अलगाव |
३-प्यार की दरकार नहीं मुझे
हमें कभी कोई करे ना प्यार
हम तो खुद से करते प्यार
मिलावट नहीं स्वीकार मुझे |
4- धुआँ सा फैला व्योम में
नक़ल किसी की करता
अपनी आँखों में जल भर के
धरती को नम करता |
आशा
\
निगाहें टिकती नहीं
तेरे मुखमंडल पर
फिसल जाती हैं उसे चूम कर |
कितनी बार कहा तुम से
अवगुंठन न हटाओ अपने आनन से
कोई बचा न पाएगा तुम्हे
जमाने की बुरी नजर से |
कब तक कोई बचाएगा तुम्हे
दुनीया की भूखी निगाहों से
किसी की जब निगाहें
भूखे शेर सी तुम्हें खोजेंगी|
तुम मदद की गुहार करोगी
चीखोगी चिल्लाओगी सहायता के लिए
पर कोई भी सुन न पाएगा
जब तक खुद सक्षम न होगी |
आज के युग में कमजोरी का लाभ
सभी उठाना चाहते हैं
दुनीया का सामना करना होगा
तभी सर उठाकर जी पाओगी |
हो आज की सक्षम नारी
यह कहना नहीं है मुझे
केवल इशारा ही काफी है
बताने की आवश्यकता नहीं है |
सर तुम्हारा गर्व से उन्नत होगा
आनन दर्प से चमक जाएगा
सफलता कदम चूमेगी तुम्हारे
हो आज की नारी कमजोर नहीं हो |
घूंघट हटे न हटे पर
चहरे पर आव रहे
नयनों में हो शर्म लिहाज
है यही अपेक्षा तुमसे |
आज भी हो सक्षम और सफल
कल होगी और अधिक हिम्मत
किसी से न भयभीत हो
दृढ़ कदम हो समाज में जी पाओगी |
आशा