08 अगस्त, 2021

क्षणिका


 

रही न अपेक्षा कभी तुमसे

छूटे न हाथ तुम्हारा कभी उससे

समय नहीं दे पाया जिसको

वही बेवख्त काम आया |


सागर में जल अथाह

कैसे नापा जाए

कोई पैमाना न मिला ऐसा

जिससे गहराई को नापा जाए |


सतही रिश्ते कब तक कोई झेले

जब दूसरा न निभाना चाहे

मन में खलिश होती है

उसे कैसे मिटाया जाए |


प्यार का बुखार नापूं कैसे 

ऐसा ताप मापी न मिला 

किसी ने उसे बाटा  हो 

ऐसा आसामी न मिला |

आशा

 

07 अगस्त, 2021

क्यों बिसराया मुझे



                                   
                                  मैंने कितने दिन रात काटे
   

तुम्हारे इन्तजार में

             तुमने मेरी सुध न ली 

इस बेरहम संसार में |

कितने यत्न किये मैंने तुम्हें रिझाने में

अपनी ओर झुकाने में  

पर तुम स्वार्थी निकले

एक निगाह तक न डाली मुझ पर  |

यह कोई न्याय नहीं है

मेरे प्रति इतना भेद भाव किस लिए

किस से  अपनी व्यथा कहूं मैं

तुमने मुझे बिसराया है |

पूरे समय तुम्हारा किया ध्यान

फिर भी तुमने सिला न दिया

मन को बहुत क्लेश हुआ 

 करूं  कैसे विश्वास किसी पर|

अंधविश्वास  मुझसे न होता

फिर भी अटूट श्रद्धा तुम पर

तुमने भी एक  न सुनी मेरी

मुझे अधर में लटका दिया |

हे श्याम सुन लो मेरी प्रार्थना

छुटकारा दिला दो इस दुनिया से

अब मेरी यहाँ किसी को

कोई आवश्यकता नहीं है|

आशा  

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


06 अगस्त, 2021

जज्बा होना चाहिए

   ख्यालों की दुनिया में

 कामयाबी का स्थान कहाँ

जहां अपने पैर  पसारे

उसे ऐसे ही ठेल दिया जाता है |

मन पर पाषाण रख

कितनी कठिनाई से

उनका बोझ  सहन

 किया जाता है

कोई मन से पूंछे  |

ख्याल तो ख्याल ही हैं

उनसे कैसी दूरी

जीने का आनंद नहीं रहता

बिना ख्वावों ख्यालों के |

सच कहा जाए 

तभी जिन्दगी सवरती हैं

जब कुछ सपने हों

साकार करने को |

केवल ख्यालों से कोई

 हल नहीं निकलता

जज्बा भी होना चाहिए सफलता का

 किला फतह करने को  |

आशा

 

 

 

 

 

 मैं

05 अगस्त, 2021

हाइकु (मित्र दिवस )

 



१-कहना नहीं

कुछ करना चाहे

इस काल में 

जीवन भार 

अब सहा न जाए

मैं क्या करूं 

३-तेरी निगाहें

तरकश का बाण

घायल करे

४-चपल हुई

जब भी मुस्कुराई

कितना रोकूँ

५- कहना है  क्या

उसको कहने दो

उदास न हो

६-छोड़ा दामन

बेघर होने लगा

किस के लिए

७-कविता लिखी

मन का भार छटा

प्रफुल्ल हुआ 

८-मन क्या है 

जब  समझ लिया

सोच के देखा 

९-प्यार किसी का 

भार नहीं मन का 

जियो खुशी से 

१०-मित्र दिवस 

मनाया है  फिर भी 

मीत न मिला 

११-स्वप्न दिखा है 

दिल बैठ रहा है 

होगा  जाने क्या  

आशा  


झ छटा

04 अगस्त, 2021

कुछ नया लिखूं


 

तैरती  भावों के सागर में

अनोखा एहसास जगा मन में

 भावों ने करवट बदली

नवीन शब्दों का खजाना मिला|

मन का  उत्साह  तरंगित हुआ

प्यार का फसाना तो सब गाते हैं

सत्य का सामना कम ही कर पाते हैं 

कलम जब गति पकड़ती है  

नई रचना उभर कर  आती है | 

रस छंद अलंकार से दूर बहुत

 शब्दों को लिपि बद्ध कर

एक नई रचना का रूप दिया 

 खुद ही प्रसन्न हो कर जो लिखा  

मन को बड़ा  सुकून मिला |

प्राकृतिक आपदा का शोर आज कल  

अधिक सुनाई देता

उस पर  लिखने को प्रेरित करता |

  उतंग लहरे महा सागर की 

जब  उत्श्रंखल  होतीं

किनारे के पेड़ टूटते बहनें लगते

 रास्ते अवरुद्ध करते 

 तवाही इतनी होती कि

 भुलाना मुश्किल होता

वर्षों के  बसे बसाए  घर

 पल भर में नष्ट हुए   |

नेत्रों से बहते अश्रु

 थमने का नाम न लेते

गहरी सोच उभर कर आती

पर निदान खोज न पाती

 आधी उम्र घर  बनाने में बीती 

फिर से सवारने में तो 

सारा जीवन समाप्त हो जाए |

यह कैसा न्याय प्रभू तुम्हारा

क्यों आम आदमी ही पिसता जाता

धनवानों से दूर कष्ट रहते

जब भी आपदा आती 

वे पहले से किनारा कर लेते |

वही शब्द वही कहानी

शब्दों की हेराफेरी सामने आती 

कुछ भी नया नही है 

फिर भी लिखने की फितरत बहुत पुरानी है | 

आशा







फिर भी लिखने की फितरत बहुत पुरानी है |

03 अगस्त, 2021

विचलन


 

नेत्र बंद करते ही रोज रात में

सपने आते रहते जाते रहते

 मन को विचलित करते  रहते   

 दहशत बन कर छा जाते |

कितने  किये टोटके कई बार

पर कोई हल न निकला

जीवन पर प्रभाव  भारी  हुआ

सुख की नींद  अब स्वप्न हुई |

कितनी बेचैनी में कटती रातें

मेरा कल्पना से बाहर थीं

प्रातःनयन खुलते ही वे स्वप्न

  अपना प्रभाव छोड़ कोसों दूर चले जाते|

 किसी ने कहा चाकू सिरहाने  रखो

उसे साफ कर तकिये के नीचे रखा

फिर भी उनसे  पीछ न छूटा

जीना मुश्किल हुआ |

डर ऐसा बैठा मन  मस्तिष्क में

पलक झपकाने का साहस न हुआ

जाने कितने उपाय पूंछे सब से

 रातें कटने लगीं जागरण में |

ईश्वर भजन से कोई अच्छी दवा न मिली

अब रोज रात हाथ जोड़ कर

ईश वन्दना करता हूँ स्वप्नों से  मुक्ति मिले  

मन की शान्ति के लिए दुआ मांगता हूँ |

आशा

02 अगस्त, 2021

मन की आवाज

सुनो  बावरे

अपने मन की आवाज

क्यों दीवाने  हुए  

 दूसरों की बातों में उलझे  |

 अपने मन की सुनो  

उसी के अनुसार चलो  

 बंद ताले दिमाग के

तब ही  खुल पाएंगे  |

 हो शांत चित्त यदि  

  उसके अनुसार चलोगे

मस्तिष्क अपने आप

सक्रीय हो गति पकड़ेगा |

जीवन का कोरा  केनवास

मन को  दिखेगा

मन होगा बेताव

उसे रंगने के लिए |

आकर्षक  रंग चुन पाओगे

सदा बहार रंग भरे चित्र

 उभर कर छा जाएंगे  

जीवन को जीवन्त कर जाएंगे  |

आशा