उलझा मन
प्यार पे डाला डाका
मैं हार गई
है मन मस्त
कोई चिंता नहीं है
ना फिक्र कोई
है ख्याल नेक
पर विचार भिन्न
बहस न हो
हुई दीवानी
यह तक न जानी
किसे प्यार दे
कौन अपना
किसे कहे पराया
अपना नहीं
गर्दिश में हैं
सितारे गर्क तेरे
शक हुआ है
आशा
उलझा मन
प्यार पे डाला डाका
मैं हार गई
है मन मस्त
कोई चिंता नहीं है
ना फिक्र कोई
है ख्याल नेक
पर विचार भिन्न
बहस न हो
हुई दीवानी
यह तक न जानी
किसे प्यार दे
कौन अपना
किसे कहे पराया
अपना नहीं
गर्दिश में हैं
सितारे गर्क तेरे
शक हुआ है
आशा
हार तेरा सिंगार तेरा है अद्भुद मन मोहक
स्वप्न में भी न देखी कभी ऎसी सुकुमारी
ऐसी तेजस्वी मनमोहिनी सूरत है तुम्हारी
निगाहें हटना नहीं चाहतीं नूरानी चेहरे से |
आनन चूमती तेरा काली काकुल
आकर्षण दुगुना करतीं चोटियाँ लम्बे केशों की
गालों में पड़ते डिम्पल लगते आकर्षक
क्या आकर्षण है तुझ में तेरी तरुनाई में |
जहां से निकलती है महक जाती सारी बगिया
गजरे की सुगंध देती है सूचना तेरे आगमन की
केशों को सजा लेती है मोगरे की सुन्दर वेणी से |
अब समझ में आया राज तेरी तरुनाई का
तूने उसे सजाया सवारा है बड़े मनोयोग से
मन का सौन्दर्य झलक रहा तन के कौने कौने से
ईश्वर ने खारे जल को किस लिए बनाया
जब प्यासे को जल न मिला क्या लाभ इसका
धूप से तपा बटोही खोजता रहा पीने का जल
यह तो है इतना खारा मुंह में डालना मुश्किल
किसी को पीने का जल नहीं दे पाता
इस में इतना खारापन किस लिए डाला |
कभी सुनामी का कहर आता तहसनहस कर जाता
बहुत समय तक सम्हलने न देता
उत्तंग लहरों का बबाल हुआ आए दिन की बात
कितनी कठिनाई से बसे बसाए घर
पल दो पल में नष्ट हो जाते बच नहीं पाते |
यह असंतोष कोई कब तक सहेगा
क्या कोई हल निकलेगा इस आपदा से बचने का
या यूँ ही उलझा रहेगा प्रकृति की दुष्ट द्रष्टि में
कभी बच न पाएगा इन प्राकृतिक आपदाओं से |
आशा
·
Bottom
of Form
हाइकु मेरे
पूर्ण हैं या अपूर्ण
नहीं जानती
बिल्ली आई है
चूहे तेरी न खैर
कजा आई है
प्यार है मेरा
बिकाऊ नहीं यह
है
अनमोल
जीत व् हार
दो पहलू सिक्के के
एक हमारा
जीना मरना
मनुष्यों के लिए ही
है आवश्यक
प्यार है मेरा
बिकाऊ नहीं यह
है अनमोल
एहसास है
अपने अस्तित्व का
भूला नहीं हूं
जलधि जल
मीठा न होता कभी
सदा से खारा
प्यासा रहा हूँ
सागर तट पर
मुहँ न धुला
अधूरी प्यास
बटोही तेरी रही
सागर तीर
मीठी है वाणी
बोलों की है छुआन
कटूता नहीं
आशा
11
यदि समझे न अर्थ इसका
तो क्या जान पाए
अपने को न पहचान सके तो क्या किया |
हर बात पर हाँ की मोहर लगाना
नहीं होता कदाचित यथोचित
कभी ना की भी आवश्यकता होती है
अपनी बात स्पष्ट करने के लिए |
दर्पण में अपनी छवि देख
अपने विचारों में अटल रहना
स्वनिर्णय लेना है आवश्यक
अपने आचरण में परिवर्तन न हो
है यही खुद्दारी सरल शब्दों में |
अपनी बात पर अडिग रह
सही ढंग से कोई कार्य करना
अपनी बात भी रह जाए
और किसी की हानि न हो |
स्वनिर्णय आता खुद्दारी के रूप में
यदि होना पड़े इस से दूर
तब दूसरों की जी हुजूरी कहलाती
और खुद्दारी नहीं रहती |
जीवन की सारी घटनाएं इससे सम्बंधित होतीं
खुद्दारी आत्म विश्वास में वृद्धि करती
मन को चोटिल होने से बचाती
सफल जीवन जीने की राह दिखाती |
आशा