11 अक्तूबर, 2021

अनुपूरक एक दूसरे के

 


 कभी प्यार से  दुलार से

कभी धमका  चमका कर

हर बार डराया है समाज ने

बिना किसी उद्देश्य के |

जब चाहा कटघरे में खड़ा किया

 कारण जानने का भी हक़ न दिया उसे  

रखा सदा वंचित सामाजिकता के एहसास से

यह कैसा न्याय किया उससे |

कोई ऐसा अपराध न था उसका  

जिसके लिए प्रताड़ित किया गया उसे

क्षमा दान में भी की कंजूसी

 क्या थी आवश्यकता उसके  निष्कासन की |

आज तक समझ में न आई यह  गुत्थी  

आवश्यकता समाज की उसके लिए थी  

अथवा  समाज को  जरूरत उसकी 

या दोनों हैं अनुपूरक एक दूसरे के |

आशा 

10 अक्तूबर, 2021

मध्यप्रदेश


                          हमारे देश का हृदय है मध्य प्रदेश

भारत  के दिल में बसता 

पांच राज्यों की सीमाएं छूती इसे  

यह दिल से अपनाता सब को

कोई विवाद नहीं किसी से  |

 है प्रचुर वन संपदा यहाँ

 खनीजों की भी कमी नहीं

उर्वरा भूमि है यहाँ की

 हरियाली भरपूर यहाँ |

अभयारण्यों की वृहद सूचि है

है उत्तम रखरखाव  वहां का

पर्यटन स्थलों की कमी नहीं

है पांच अक्षरी नाम मध्यप्रदेश  |

इसने सबका  दिल जीत लिया है

हर क्षेत्र में खरा उतारा है  

है अग्रणी सांस्कृतिक गतिविहियों में

कालीदास की नगरी उज्जैनी |

कृष्ण सुदामा की शिक्षा स्थली

संदीपनी आश्रम में पाई थी शिक्षा दौनों ने

मंदिरों की नगरी अवन्तिका   

महाकाल  बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक

 हरसिद्धि देवी काल भैरव प्रसिद्ध  यहाँ |

पांच प्रमुख नदी  हैं इस प्रदेश की  

कालीसिंध शिप्रा चम्बल बेतवा नर्मदा  

पेय जल की कमी नहीं है

 हरा भरा है मध्य प्रदेश |

 है अग्रणी  हर क्षेत्र में इंदौर

देश के सबसे स्वच्छ शहरों में से एक

 जन मानस  सरल सहज यहाँ

उनका सहयोग बड़ा है इसे नम्बर एक बनाने में |

पांच प्रमुख बोलियाँ बोली जाती यहाँ 

यहाँ जो भी यहाँ आता यहीं बसना चाहता

 सबको अपनाते घुलमिल जाते   

 पानी में चीनी की तरह यहाँ |

भोपाल है राजधानी यहाँ की

 ताल तलैया भरे लबालब जल से

पर्यटक जब भी आते मौसम होता इतना प्यारा

 समय कम पड़ जाता घूमने के लिए |

तानसेन की कर्म भूमि यहीं थी

मशहूर ग्वालियर हुआ सांची के स्तूप से

ओरछा का महल  खजुराहो के मंदिर

हुए प्रसिद्ध प्रस्तर शिल्प के लिए|

यहीं जन्मी बड़ी हुई यहीं शिक्षा पाई

है यही कर्मभूमि मेरी  भी 

मध्य प्रदेश पर हो क्यों न  गर्व मुझे |

आशा 


09 अक्तूबर, 2021

वर्ण पिरामिड


 

      है

   वही

   प्यार की

   डोरी कच्ची

 पर न टूटे

 जरा झटके से

 मजबूत दिल से है

बनी कच्चे सूत से है

पर मजबूर नहीं है |

    मैं

    घटा

    हूँ काली

   नापती हूँ

 समस्त व्योम

चाँद तारों संग

लुका छिपी खेलती

हर बार मात देती हूँ

उन्हें जिन्हें मैं प्रिय नहीं |

   है

  तेरी

 सुन्दर

छवि वही

मुझ में बसी

 दूर न मुझ से  

ना मैं करना चाहूँ

 सबसे प्यारी वह मुझे |

हूँ 

स्वप्न 

तेरा मैं

ख्याल नहीं

हकीकत हूँ 

कल्पना नहीं हूँ 

सपना सच न  हो 

यह हो नहीं सकता 

 मन का विश्वास  हूँ मैं |


आशा 

 

08 अक्तूबर, 2021

हाइकु


 

उलझा मन

 प्यार पे  डाला डाका

मैं हार गई

 

 है मन मस्त

कोई चिंता नहीं है

ना फिक्र कोई

 

  है ख्याल नेक  

पर विचार भिन्न

बहस न हो

 

हुई दीवानी

यह तक न जानी

किसे प्यार दे

 

कौन अपना

किसे कहे पराया

 अपना नहीं

 

गर्दिश में हैं

 सितारे गर्क तेरे

शक हुआ है 

आशा 

07 अक्तूबर, 2021

तरुनाई


 

हार तेरा सिंगार तेरा है अद्भुद मन मोहक

 स्वप्न में भी न देखी  कभी ऎसी सुकुमारी  

 ऐसी तेजस्वी मनमोहिनी सूरत है तुम्हारी 

निगाहें हटना नहीं चाहतीं नूरानी चेहरे से |

 आनन चूमती तेरा काली काकुल

 आकर्षण दुगुना करतीं चोटियाँ लम्बे केशों की

गालों में पड़ते डिम्पल लगते आकर्षक

क्या आकर्षण है तुझ में तेरी तरुनाई में |

जहां से निकलती है महक जाती सारी बगिया   

गजरे की सुगंध देती है सूचना तेरे आगमन की

 केशों को सजा लेती है  मोगरे की सुन्दर वेणी से |

अब समझ में आया राज तेरी तरुनाई का

तूने उसे सजाया सवारा है बड़े मनोयोग से

मन का सौन्दर्य झलक रहा तन के कौने कौने से

06 अक्तूबर, 2021

रौद्र उत्तंग तरंगें जलधि की



            जलधि  के किनारे  खड़ा  मैं सोच रहा

ईश्वर ने खारे जल को किस लिए बनाया

जब प्यासे को जल न मिला क्या लाभ इसका

धूप से तपा बटोही खोजता रहा पीने का जल

यह तो है इतना खारा मुंह में डालना मुश्किल

  किसी को पीने का जल नहीं दे पाता

इस में इतना खारापन  किस लिए डाला  |

 कभी सुनामी का कहर आता तहसनहस कर जाता 

बहुत  समय तक सम्हलने न देता  

उत्तंग लहरों का बबाल हुआ  आए दिन की बात

कितनी कठिनाई से बसे बसाए घर

पल दो पल में नष्ट हो जाते बच नहीं पाते |

यह असंतोष कोई कब तक सहेगा

क्या कोई हल निकलेगा इस आपदा से बचने का

या यूँ ही उलझा रहेगा प्रकृति की दुष्ट द्रष्टि में  

कभी बच न पाएगा इन प्राकृतिक आपदाओं से |

आशा 




05 अक्तूबर, 2021

क्या खोया क्या पाया


                                        क्या खोया क्या पाया मैंने 
                                       इस वृहद संसार में
                                        यूँ ही भटकती  रही अपनी 
                                       चाह की तलाश में 
                                      कभी सोचा न था यह मार्ग 
                                     इतना दुर्गम होगा 
                                 मरुभूमि में मृग मारीचिका की
                                    होगा  तलाश जैसा
                                  मन को बहुत संताप हुआ
                                    जब ओर न छोर मिला 
                                 सही मार्ग चुन न पाई 
                                 अपनी कमजोरी समझ न पाई 
                               बाह्य आडम्बर ने मन मोहा 
                                  अपने अंतस को न टटोला
                               पर अब पछताने से क्या लाभ
                                      समय लौटन पाया |
                                            आशा