25 अक्तूबर, 2021

वर्तमान में कैसी हो जिन्दगी


वर्तमान में जीने के लिए
 गाना गुनगुनाया
 उसने प्यार किया
 और भूल गया कि |
 क्या करने को आया 
 क्या सोचा था 
और क्या हो गया|
  यही है राज
 खुशहाल जिन्दगी का
 जिसने भी हर बात को मन में रखा 
किसी से बांटना न चाहा
 वही हारा जिन्दगी के हर क्षेत्र में|
 | फिर से पीछे 
 मुड़ कर न देखा
 क्या खोया क्या पाया
 यहीं हारा और पछताया ||
आशा 

24 अक्तूबर, 2021

ओ रे चन्दा तुम जल्दे आना मैंने चतुर्थी का व्रत रखा है





ओ रे चन्दा तुम जल्दी आना
 मैंने चतुर्थी का व्रत रखा है
 यदि समय पर न आए
 मैं तुमसे ग़ुस्सा हो जाऊंगी 
| मैं भूखी रहूँ या न रहूँ 
 मुझे कोई फर्क नही पड़ता
 पर सभी परेशान हो जाते हैं
 बताओ मैं क्या करू किसकी सुनूं |
 मैंने मन चाहा वर पा लिया है 
 दुनिया की नियामत मुझे मिली है
 जो चाहा हर बात पूरी हुई है
|पर यदि व्रत छोड़ा 
 आने वाली पीढ़ी क्या शिक्षा लेंगी
 कुछ तो ख्याल रखना होगा 
 तुम्हें मेरा साथ देना होगा |
समय के महत्व्  को जानो
 समय की सीमा न लाघों
 बस यही अरदास है तुमसे 
  अधिक  परिक्षा न करवाओ  |
 आशा

22 अक्तूबर, 2021

क्षणिकाएं


बादलों के बीच
 बीच से झाँक रहा
 यह कैसी शरारत है
 या तेरी आदत है | 

 २-तेरे मेरे बीच है
 एक दीवार समाज की
 जो मिलने नहीं देती 
 और दूरी बनी रहती | 

 ३-दुनिया का क्या वजूद
 जब हम न होगे
 हमारी जगह कोई न ले सकेगा
 तुम्हारा घर घर न होगा
 चारो ओर वीरानगी का मंजर होगा 
 सब स्नेह को तरसेंगे |

 ४- किसने कहा तुम पूजा करों 
 जब मन में कोई श्रद्धा  नहीं
 क्या जरूरत पत्थर पूजने की 
 जब कभी याद आती ही नहीं | 
आशा

मौसम चुनाव का


                                        मचा हुआ कोहराम सड़क पर

पीछे बड़ा जन समूह है

मौसम वोट माँगने का आया है  

आगे आगे नेता है पीछे हुजूम है |

कितने वादे  किये कितने रहे  शेष

सब का लेखा जोखा  देना है

फिर से नये वादे करना हैं

वोट की राजनीति से अनिभिग्य नहीं है |

रुख किस ओर करवट लेगा

किस पार्टी का परचम फहराएगा

अभी तक  स्पष्ट नहीं है

फिर भी प्रयत्नों में कोई कमीं नहीं है |

एक दिन ही शेष है  इन प्रपंचों के लिए

फिर घर घर जा कर नेता जी करेंगे प्रणाम

जाने कितने प्रलोभन देंगे एक वोट के लिए

पर चुनाव समाप्त होते ही भूल जाएंगे वादे |

गली मोहल्ला भी याद न रहेगा

 अगले चुनाव के आने तक 

 व्यस्त हो जाएंगे अपना घर भरने में

 चारों हाथ पैरों से जनता को लूटने में |

आशा

 

21 अक्तूबर, 2021

वर्ण पिरामिड

                                                ना  

                       मानो

                                  हम हैं

                                 तुम्हारे ही 

                               कोई और नहीं  

                              वह दूर हो गया है

                            किसी से लगाव नहीं है|

है

तेरा

जलवा

स्वप्न जैसा

कोई न मिला

बड़ा  यत्न किया

कभी किसी से न सीखा

   लक्ष्य  तक पहुँचने में  |

    है

    मेरा

    विचार 

       सोच का है  

   ढंग अनूठा

    किसी से मिलता  

  नहीं तो क्या सोचना

     मन को नहीं दुखाना है | 
आशा 
     

20 अक्तूबर, 2021

शरद पूर्णिमा


 


                   ओ शरद पूनम के चाँद

 तुम आए ठंडी हवा के साथ

 मैंने खीर का भोग लगाया है   

अमृत वर्षा के लिए है |

 ऐसी है  क्या बात

मिठास दुगुनी हो जाती

मिलते ही रात्रि में

तुम्हारी चांदनी का  साथ |

जाने कितने  रोगों  का

उपचार है तुम्हारे पास

 तुम हो अदभुद चिकित्सक

उन के जिनने सेवन किया प्रसाद

श्वास जैसे मर्ज के लिए |

 सफल  साहित्यिक आयोजन

किये जाते हर वर्ष

 जब तुम आते

नृत्य निशा भी आयोजित होती आज |

गीतों का आनंद ही कुछ और होता

 तुम्हारी छत्र छाया में

सभी मनोयोग से  हिस्सा लेते

इस आयोजन में |

शरद पूर्णिमा की चमक अनोखी

मन मोह रही है

चंद्रमा की रश्मियाँ झलक रही हैं

मौसम रंगीन हुआ है आज |

आशा

 

 


19 अक्तूबर, 2021

कुनकुनी धुप


 कुनकुनी धूप खिली है वादियों में

रश्मियों ने पैर पसारे घर के आँगन में

प्रातः का मंजर सुहाना हो गया

गीत गाए दिल खोल  परिंदों ने |

व्योम भरा है उड़ते पक्षियों के गुंजन से

अनोखी छटा छाई है लाल सुनहरे अम्बर में

झूमती खेतों में बालियाँ दृश्य मनोरम है

लयबद्ध कलरव उड़ते उडगन का मन को बांधे हैं  |

प्रातः की बेला में जब मंद हवाओं के झोके आए  

 आदित्य चला देशाटन को रथ पर हो कर सवार

 धूप का आनंद उठाते जीव जीवन्त हो जाते

सब कार्यों में व्यस्त हो जाते आगमन भोर का होते ही |

गृहणियां चौके में जातीं वहां का कार्य प्रारम्भ करतीं

 बच्चे भी दौड़े आते हलुए की फरमाइश करते 

जब अल्पाहार करते चहरे पर मुस्कान लिए  

भाव संतुष्टि के आते बड़ा सुकून देते |

आशा