खीचते मुझे अपनी ओर
मेरा मन भयभीत होता
मैं जान ना पाती क्या करती |
मुझमें सही गलत जानने का सलीका
नहीं था हर बात से निपटने का
कोशिश भी की पर असफल रही
अपने को असफल जान रोना रोया |
एक बुजुर्ग ने मुझे समझाया बुझाया
बचकानी हरकत को गुनाह करार दिया
तब मैंने अपना आत्म मंथन किया
अपनी भूल को समझा स्वीकारा
शर्म से पानी पानी हुई
जिद्द ना करने की कसम खाई |
बुजुर्गों के सामने कैसे रहना
ढंग से रहने का मन बनाया
मैने अपने मन को समझाया
हर बात को ध्यान से समझा |
सब बड़ों का कहना माना जाए
किसी से बहस ना की जाए
खुद को मर्यादा में रखा जाए
यही शिक्षा आज के किस्से से ली मैंने |