27 फ़रवरी, 2023

मेरी दुविधा


             आज बड़ी उलझन में हूँ

मैंने तो  सोचा था

सारे कार्य पूर्ण कर लिए हैं

जिम्मेदारी मेरी संपन्न हुई है   |

शायद यह मेरी भूल रही

एक पुस्तक में पढ़ा था

जब बच्चे बड़े हो जाएं

उन पर जुम्मेंदारी सोंपी जाएं |

वे यदि सक्षम और समर्थ हों

उन की मदद ली जाए 

कहाँ मैं गलत थी

अपनों और गैरों में भेद नहीं कर पाए |

कोई आए ठहरे सब को अच्छे लगते हैं 

मेंहमान की तरह स्वागत होता है  

पर जाने कब विदा होंगे मन को लगता है |

आज कोई प्यार नहीं किसी को 

अपनों को गैर समझा जाता 

यदि कोई समस्या हो बताया नहीं जाता 

हम भी कुछ लगते हैं सोचा नहीं जाता |

मन उलझनों की गुत्थि लिए घूम रहा दुविधा में 

मैं सोच में पड़ी हूँ क्या करू

दुविधा की चादर लिए

खुशी से हुई मीलों दूर |

आशा सक्सेना 

26 फ़रवरी, 2023

चाँद सा सुन्दर चेहरा तुम्हारा






चाँद सा चमकता चेहरा तुम्हारा 

सीधा सरल स्वभाव प्यारा सा
अब तक कहाँ रहीं  

कभी सामने ना आईं |
उसकी की चमक ही नहीं अकेली

काले दाग भी हैं चन्दा पर

ऐसा ही तुम्हारे कपोल  पर

 कहीं नजर न लग जाए |

काले कजरारे केशों की लट

 आई जब  मुखमंडल पर

छाई बादलों की घटाएं

प्यारे से मुखड़े पर

चहरे का नूर दमकता है|

तुम जैसा कोई नहीं है 

सादगी में सुन्दरता है 

मुझे तुमसे अच्छा

कोई नजर ना  आता|

कोई कमी निकालू कैसे

सपनों की दुनिया में 

तुम और मैं और कोई नहीं |

 मन में खुशी हो जाती दोगुनी 

जब सपना टूटता 

मैं उदास होता जाता हूँ 

तुम न जाने कहाँ खो  जाती हो |

आशा सक्सेना


25 फ़रवरी, 2023

हाइकू




 

१ -नहीं  किसी ने

कविता को समझा 

 हुई बेकल

२- साझा रहना

किसी से ना बांटना

मन दुखता

३- मंजिल कहाँ

खोज ना पाई मैं ही 

उलझी रही

४-यादें हैं तेरी

हैंअनोखा प्रमाण 

एक प्यार की

५- मन ना मेरा

ना हुआ तेरा कभी

स्वतंत्र रहा

६- छल नहीं है

किसी के ह्रदय में

यही है सच |

आशा सक्सेना 


23 फ़रवरी, 2023

क्षणिकाएं






                                                                   किसी ने जन्म दिया 

यशोदा मां ने पाला 

नन्द का लाल कहलाया

मेरा कान्हां बृज को भाया |


तुमकहाँ से आए सब के मन को भाए 

बालक वय बिताईयहाँ और चले बृज से दूर 

अपने मामा कंस से भेट के लिए 

प्रजा के कष्ट दूर करने के लिए |


आज का युग बहुत कष्टकर है

आम जनता के लिए

घोर अनाचार फैला है मथुरा  राज्य में    

मामा कंस का कोई ध्यान नहीं आराम से जीने के सिवाय 

प्रजा की कौन सुने सहारा दे  |


यहाँ सुनी जाती है शक्ति शालियों की 

सामान्य  जन कष्ट सहन कर रहे मथुरा में 

कोई सुनने को तैयार नहीं अपनी व्यथा किससे कहें   

तभी कृष्ण को बुलाया हैकष्ट निवारण के लिए  

                    वह आए अपने राज्य को सम्हाला शांति स्थापित हो |     

आशा सक्सेना 

22 फ़रवरी, 2023

जप लो राम राम राम

 







जप लो राम राम   हटीले श्याम  श्याम  
किसी से  शिक्षा कीक्या आवश्यकता
 जीवन के अंतिम पड़ाव पर 
यह आती जीवन के अनुभवों के साथ से |
यहीं धरा पर सब सीख लिया जाता 
अपने बुजुर्गों से एक पीढी से दूसरी को शिक्षा देती 
है बड़ों का काम अनुभवों की  शिक्षा देना
अलग  से शिक्षा का क्या लाभ 
इनको ही उताराजाता अपने जीवन में |
यदि इनको उतारा जीवन में  हो जाता जीवन में 
किसी से होड़ करने का क्या लाभ है 
यदि अपना ज्ञान कम होता उसे ही पूरा करने में 
कष्ट तो होता पर अन्तमें सफल जीवन पाया होता 
मैंने बहुत कुछ सीखा है अपने बढ़ते जीवन से 
अब सोचती हूँ किसी की नक़ल से क्या लाभ 
खुद की कोशिश  है पर्याप्त पूरी  सफल होने के लिए 
यदि ईश्वर हो साथ किसी की क्या जरूरत ||
आशा सक्सेना 

21 फ़रवरी, 2023

समुन्दर का जल


         अथाह जल देखा समुद्र का 

वह होता नीला आसमान सा 

जल की कमीं कभी न होती

पर वहां जल मीठा नहीं होता |

प्यासा पथिक आता जब पास उसके 

उसे जल बिना पिए ही लौटना पड़ता 

 लवण निकाले जाते उसके पानी से 

 जलचरों का जीवन पालन होता  वहां|

  समुद्र में जल पोतों से व्यापार होता

एक देश से दूसरे को  

जल के बादल हैं वाहक पानी के 

जब तापमान अधिक होता वाष्प बनती |

मौसम बदलते ही आसमान में बादल छा जाते 

आपस में जब  टकराते 

बादलों का गर्जन  तर्जन  होता जल बरसता |

आशा सक्सेना 



 


20 फ़रवरी, 2023

कैसे मिल पाए




मन ना हुआ झांकना बंद करने का
हुई बड़ी प्यारा बाते इशारों में
चिलमन के पीछे से झांकना उसका
मनना हुआ उठने का वहां से |
वह क्या चाहती थी कह ना सकी
मन ने हाथों के इशारे से पर
थी बेकरार आपस में बातें करने को
उसके इशारे बता रहे थे वह कहाँ मिले |
कौन सा रंग पहन कर आएगी
कहाँ और कब आएगी
समय का ध्यान यदि ना रखा
बहुत कठिन होगा घर से बाहर निकलना
गली के कौने पर आकर मिलना
यदि किसी ने देख लिया
बहुत शामत आ जाएगी तुम ना समझ पाओगे |
ना चाहो छत पर पर आकर मिलना
वहां तो अधिक कठिनाई नहीं होगी
तुम बेआवाज आना चुपके से

आशा सक्सेना

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