जब दूर गया तुमसे याद तुम्हारी आई
ना निंद्रा आई ना चैन मिला
शांति सीमा पर थी
हाथ हिलाते देखा तुम्हें
मन बल्लियों उछला
सब से मिला पहले |
फिर कक्ष में आया
आश्चर्य हुआ मेरे मुंह से निकला
तुम यहाँ कैसे कैसी परीक्षा हुई
परिणाम कब तक आएगा |
आशा सक्सेना
जब दूर गया तुमसे याद तुम्हारी आई
ना निंद्रा आई ना चैन मिला
शांति सीमा पर थी
हाथ हिलाते देखा तुम्हें
मन बल्लियों उछला
सब से मिला पहले |
फिर कक्ष में आया
आश्चर्य हुआ मेरे मुंह से निकला
तुम यहाँ कैसे कैसी परीक्षा हुई
परिणाम कब तक आएगा |
आशा सक्सेना
रंग गुलाल लाया
खेलेंगे रंग
२-भक्त खेलते
फूलों के रंग बना
कान्हां के संग
३-मिलजुल के
रंग लगाते लोग
होली है आई
४-गीत फाग के
गाते हैं चंग बजा
थिरकते हैं
५- गुजिया खाना
बहुत अच्छा लगा
साकों के साथ
६-डाला गुलाल
मिलकेआपस में
भूल के बैर
आशा सक्सेना
सूखा सावन रहा
सर्दी भी नहीं भर पूर
अभी से गर्मीं का
एहसास हो रहा |
क्या यह नमूना नहीं
ग्लोवल वार्मिग का
असमय मौसम में
परिवर्तन हुआ जाता |
अभ्यास नहीं इस का
पर जीवन यहीं बिताना है
इस बदलाव के संग जीना है
उसे ही खोजने में
वैज्ञानिक जुटे हुए हैं |
मनुष्य ही जुम्मेंदार है
इस परिवर्तन के लिए
इससे कैसे बचा जाए
अब खोज रहा है |
आशा सक्सेना
मैंने तो सोचा था
सारे कार्य पूर्ण कर लिए हैं
जिम्मेदारी मेरी संपन्न हुई है |
शायद यह मेरी भूल रही
एक पुस्तक में पढ़ा था
जब बच्चे बड़े हो जाएं
उन पर जुम्मेंदारी सोंपी जाएं |
वे यदि सक्षम और समर्थ हों
उन की मदद ली जाए
कहाँ मैं गलत थी
अपनों और गैरों में भेद नहीं कर पाए |
कोई आए ठहरे सब को अच्छे लगते हैं
मेंहमान की तरह स्वागत होता है
पर जाने कब विदा होंगे मन को लगता है |
आज कोई प्यार नहीं किसी को
अपनों को गैर समझा जाता
यदि कोई समस्या हो बताया नहीं जाता
हम भी कुछ लगते हैं सोचा नहीं जाता |
मन उलझनों की गुत्थि लिए घूम रहा दुविधा में
मैं सोच में पड़ी हूँ क्या करू
दुविधा की चादर लिए
खुशी से हुई मीलों दूर |
काले दाग भी हैं चन्दा पर
ऐसा ही तुम्हारे कपोल पर
कहीं नजर न लग जाए |
काले कजरारे केशों की लट
आई जब
मुखमंडल पर
छाई बादलों की घटाएं
प्यारे से मुखड़े पर
चहरे का नूर दमकता है|
तुम जैसा कोई नहीं है
सादगी में सुन्दरता है
मुझे तुमसे अच्छा
कोई नजर ना आता|
कोई कमी निकालू कैसे
सपनों की दुनिया में
मन में खुशी हो जाती दोगुनी
जब सपना टूटता
मैं उदास होता जाता हूँ
तुम न जाने कहाँ खो जाती हो |
आशा सक्सेना
१ -नहीं किसी ने
कविता को समझा
हुई बेकल
२- साझा रहना
किसी से ना बांटना
मन दुखता
३- मंजिल कहाँ
खोज ना पाई मैं ही
उलझी रही
४-यादें हैं तेरी
हैंअनोखा प्रमाण
एक प्यार की
५- मन ना मेरा
ना हुआ तेरा कभी
किसी के ह्रदय में
यही है सच |
आशा सक्सेना
यशोदा मां ने पाला
नन्द का लाल कहलाया
मेरा कान्हां बृज को भाया |
तुमकहाँ से आए सब के मन को भाए
अपने मामा कंस से भेट के लिए
प्रजा के कष्ट दूर करने के लिए |
आज का युग बहुत कष्टकर है
आम जनता के लिए
घोर अनाचार फैला है मथुरा राज्य में
मामा कंस का कोई ध्यान नहीं आराम से जीने के सिवाय
प्रजा की कौन सुने सहारा दे |
यहाँ सुनी जाती है शक्ति शालियों की
सामान्य जन कष्ट सहन कर रहे मथुरा में
कोई सुनने को तैयार नहीं अपनी व्यथा किससे कहें
तभी कृष्ण को बुलाया हैकष्ट निवारण के लिए
वह आए अपने राज्य को सम्हाला शांति स्थापित हो |
आशा सक्सेना