23 मार्च, 2023

करवटें बदलती जिन्दगी


जिन्दगी करवटें लेते गुजरी

कोइ काम किया ना किया

कुछ भी रचनात्मक न हो सका

खुशहाल जीवन जिया या ना जिया हमने  |

किसी भी आकर्षण ने बरबाद ना  किया  

मनमानी की आदत ने समाज से भी दूर किया

खेरियत यही रही सीधी राह पर चले  

यहाँ तक आते आते राह नहीं भटके |

बचपन में जो देखा सुना था

 वही  प्रभाव रहा मन में  बस एक बात अच्छी रही

 और किसी का प्रभाव नहीं पड़ा मन में

अपना वजूद ना खोया हमने |

हम तो हम थे अंधभक्त  नहीं 

जहां थे वहीं रहे आगे बढ़ने की चाह में

 कुछ नया नहीं सीखा सद्गुणों के सिवाय  

कुप्रभाव से दूर रहे यही क्या कम है |

किसी के गलत  प्रभाव में नहीं आए

कितनी बार मन में आया

अकेले जीवन गुजरेगा कैसे

किसी को समय नहीं हमारे लिए |

पुस्तकों से अच्छा मित्र कोई नहीं

उनके साथ समय कहाँ कट जाता है पता नहीं चलता 

घंटों व्यस्त रहती हूँ पढने लिखने में 

थकते ही कल्पना जगत में खो जाती हूँ |

आशा सक्सेना     

22 मार्च, 2023

गाड़ी के दो पहिये


अब तक कहाँ रहे 

       उसकी याद ना आई कभी 

       कभी बातें तक नहीं की 

       ऎसी क्या नाराजगी हुई |

        पहले कभी मनमुटाव नहीं होता था

     अचानक यह सब बखेड़ा हुआ कैसे

      क्या किसी से सलाह ली  तुमने

       तुमने जिसे अपना समझा हो |

       घर एक से नहीं बनता दो लोगों की आवश्यकता होती 

        ना ही एक छत के नीचे चार दीवारी में  रहने से बनता 

     घर पूर्ण होता एक विचार वाले होने से

एक दूसरे का सम्मान करने से |

       जब एक साथ रहते घर एक ही  रहता

      क्या यह सब तुमने नहीं सीखा 

किसने दी सलाह तुम्हें |

        जिसने दी  शिक्षा  अधूरी तुम्हें 

    उसने    यह तो बताया होगा 

    गाड़ी के दो पहिये होते हैं 

       दौनों को साथ ही रहना है स्वेछा से|

बैलगाड़ी चल नहीं सकती एक पहिये से 

यही है घर की परिभाषा

यहाँ है  बड़े छोटे का लिहाज है 

 एक  रहने के लिए |

जिनका हो समान सोच

  खुशहाल जिन्दगी के लिए 

आशा सक्सेना 

21 मार्च, 2023

कैसे लिखूं कविता

                

              कैसे लिखू कविता 

मुझे रस  छंद अलंकार  का ज्ञान नहीं

ना ही मुझे मीटर का बोध बड़ी कमी लगती है

लेखन मैं  परिपक्वता नहीं आई अब तक  |

 मन  है निराश क्यों अब समझ में आया

केवल शब्द चुनने से कविता नहीं बनती

  विचार लिपिबद्ध करने से

कविता का रूप नहीं सुधरता |   

मन पर  प्रभाव नहीं पड़ता

जब तक विचार सशक्त नही होता

उसे बिम्बों से सजाया नहीं जा सकता

छंदों में  ठीक से ढाला नहीं जाता |  

जो कहना चाहती हूँ कह नहीं पाती

वह खुशी नहीं मिलती जिसकी रहती अपेक्षा   

सीधी सच्ची बातों को लिपिबद्ध करने में

भावों को विशेष रूप से ढालने में चौपाई में |

रही असफल कविता लिखने में

पर कोशिश नहीं छोड़ी 

कभी सफलता आएगी  

सबने कहा किसी और विधा में लिखो|

 है कोशिश बेकार

मेरे मन ने नहीं स्वीकारा इसे

जैसा भी लिखूं

 सब मुझे अच्छा लगता है |

आत्मसंतुष्टि के लिए यह भी कम पड़ता है

विविध विचारों को रंग देती हूँ प्रसन्नता के लिए

खुद के मन की खुशी के लिए

सोचती हूँ कभी तो सफलता होगी  मेरे पास |

               आशा सक्सेना  

20 मार्च, 2023

चंचल चपल हिरणीजैसी


                                                                चंचल चपल हिरणी जैसी

उन्मुक्त घूमती वनमण्डल में

भय नहीं किसी का उसको

यही तो घर है उसका |

किसी की वर्जना नहीं सहती

रहती बंधन मुक्त होकर 

बिंदास बने रहना था अरमान उसका

किसी की बंदिश सहना

नहीं मंजूर उसे|

यदि उसने सोच लिया

उसने सही मार्ग चुना है  

वह  सही राह पर चल रही

तब अपनी बात पर अड़ी रहती |

कभी पीछे पैर नहीं करती

चाहे कोई कितना भी रोके टोके

मन से एक बार सोचती

 फिर पलट कर नहीं देखती |

यही है आत्म विश्वास का चरम

उसका जगता उन्नयन

वह है दीन दुनिया से कोसों दूर

आज के माहोल में बिलकुल सही |

आशा सक्सेना 

था इन्तजार तुम्हारा

 





                                                          था  इंतज़ार  दुनिया में  बेसब्री से

वह  आए जब पहली बार झुले में

थाली बजी ढोल बजे इस अवसर पर

खुशियाँ मनाई सोहर गीत गाए सब ने |

घुटनों चले  उंगली पकड़ी  चलना सिखाया

गिरते पड़ते उठना सीखा

चार कदम चलना सीखा |

सबने बड़ी ख़ुशियाँ मनाई

पांच वर्ष में पट्टी पूजन करवाया

फिर शाला में भर्ती करवाया

जीवन की गाड़ी आगे बढ़ने लगी  |

माता पिता के अरमान थे अनगिनत 

 वे भी पूरे ना हो सके

 प्रार्थना भी नहीं सुनी प्रभु  ने  

उस पर दया दृष्टि भी ना  दिखाई |

क्या यही भाग्य में लिखा था

उसने  सब कार्यों को प्रभु के हाथ छोड़ा

अब ईश्वर का सहारा लिया

बड़ों  ने आशीष दिया आत्म बोध जाग्रत हुआ |

आया है  साहस खुद मैं हर  समस्या को झेलने का

 अब है इतना साहस उसमें भय  का कोई स्थान नहीं  

आत्मशक्ति जाग्रत हुई है नहीं चाह सहारे  की

अपने पैरों पर खड़ी हुई है आश्रित नहीं किसी की |

आशा सक्सेना 

19 मार्च, 2023

तुम ना समझे मुझे







हम साथ साथ रहे

मैंने तुम्हें जाना 

तुम्हारी फितरत को पहचाना 

पर तुम ना समझे मुझे||

है मेरी आवश्यकता क्या 

किन  बातों  के पास आकर 

अच्छा नहीं लगता मुझे 

तुमसे क्या अपेक्षा रखती हूँ 

तुम पूरी कर पाओगे या नहीं 

कभी सोचने लगती हूँ 

क्या कुछ अधिक ही 

चाहा तुमसे मैंने 

जब चाह पूरी नहीं होती 

तुमको बेवफ़ा का नाम दे  दिया मैंने 

खुद की खुशी को भी 

अपना नहीं समझ पाती 

पर किसीसे क्या शिकायर करूं 

किसी नेमुझाज्को समझा ही नहीं 

शयद यही प्रारब्ध में लिखा है मेरे |


आशा सक्सेना 


कविता का गीत बड़ा मदिर

 




कविता का गीत बड़ा मदिर

सब से मधुर सब से मीठा 

गाने के शब्द भी चुन लिए

कोमल भावों को सजाया वहां |

 मधुर धुन उसकी गुनगुनाती

एक आकर्षण में बहती जाती

कलकल कर बहती नदिया सी

लहरों पर स्वरों का  संगम होता |

यही विशेषता है उन दौनों में

एक ही ताल पर शब्दों का थिरकना

मनभावन रूप में सजाए जाना एक नया

 रूप दिखाई देता गीत जीवंत हो जाता |

आशा सक्सेना