आए हो तो जाने की ज़िद ना करो
यह कोई बात नहीं कि
तुम मेरी भी ना सुनो
मुझे यूँँ ही बहका दो अपनी
बातों में |
क्या राह भूल गए तुम
या तुमको किसी से
लगाव ना रहा यहाँ
केवल व्यवहार सतही रहा
मैंने कितनी कोशिश की
पुरानी यादों में तुम्हें व्यस्त करने की
जब भी बीती यादें आईं
इधर उधर की बातों में उलझे
रहे |
तुमने कभी सोचा नहीं
हम क्या लगते हैंं तुम्हारे
किस पर आश्रित हैं सारे |
आज तक कोई पत्र ना लिखा
ना ही समाचार भेजा
बहका दिया बच्चों की तरह
मन को बहुत उदास किया |
क्या है यह न्याय तुम्हारा
हमको कुछ ना समझा
अन्यों की महफिल में
बहुत दूर किया सबसे हमको |