व्यथा तो व्यथा है
व्यथा किसी की जागीर नहीं
जिसे हर समय वह
चिपकाए रखे अपने सीने से |
अब तो समय बीत गया है
आम आदमी अब आम रहा
कोई खास नहीं हो पाया
कुछ बदलाव उसमें ना हुआ |
बचपन मैं टोका जाता था
किसी की बात मानना
कोई गलत बात नहीं
सभी की प्रशंसा पाना है |
सब की रोका टोकी
मुझे रास ना आई
घंटों रोई बिना बात
जरा ज़रा सी बात पर
पहले तो प्यार से समझाया गया
पर बात बिगड़ते देर ना लगी |
मैंने जिद्द ठानी बाहर पढ़ने की
किताबों को सच्चा साथी समझा
मन पर नियंत्रन बनाए रखा
आगे बढ़ने की कसम खाई |
अपना मनोबल बढाया
अपने मन की सुनी
यही मेरे काम आई
अब प्रसन्नता आई जीवन में |
आशा सक्सेना