15 सितंबर, 2023

आज के सन्दर्भ में

 

आज के सन्दर्भ में

जब भी आपस में मिलते

तनातनी बनी रह्ती

कभी तालमेल ना होता आपस में |

कितने भी प्रयत्न किये जाते

दोनो झुकने का नाम न लेते 

किसी समस्या का निदान  न होता

क्यूंकि कि कोई सलाहकार ही नहीं मिल पाता

सही  सलाह ही नही मिलती जब 

यह पता भी नहीं चलता

 कि गलत या सही सलाह होती कैसी  

मैंने किसी की सलाह ना ली

सही सलाहकार ना  खोजा 

 यही भूल रही मेरी

अपने ही घर में आग लगा ली मैंने

सही सलाहकार न खोजा

तभी यह भी ना हो पाया

तालमेल क्या रहा

किस हद तक सही रहा |

बहुत ठोकरें  खाई फिर भी

सही राह ना चुन पाई

अब अपनी गलती

सही सलाह ना चुन पाने पर |

आँखें भी भरी  भरी रहीं पर

 अब पछताने से क्या लाभ

आगे से सतर्क हो कर 

सही चुनाव करने की कसम खाई |

किसी सही जानकारी लेकर  

समझ लेने कीअब आगे से 

 यह भूल कभी ना करने की कसम खाई 

अपने विश्वास पर ही आगे बढ़ने की बात समझी 

दूसरों की सलाह ना मानी पहले परखी जांची 

तभी  संतुष्ट हो पाई |

आशा सक्सेना 

13 सितंबर, 2023

व्यथा

                                          

                                        व्यथा तो व्यथा है 

                                                 व्यथा  किसी की जागीर नहीं

जिसे हर समय वह

चिपकाए रखे अपने सीने से |

अब तो समय बीत गया है

आम आदमी अब आम रहा 

कोई खास  नहीं हो पाया

कुछ बदलाव उसमें ना हुआ |

बचपन मैं टोका जाता था

किसी की बात मानना

कोई गलत बात नहीं

सभी की प्रशंसा पाना है |

सब की रोका टोकी

मुझे रास ना आई

घंटों रोई बिना बात

जरा ज़रा सी बात पर

पहले तो प्यार से समझाया गया

पर बात बिगड़ते देर ना लगी |

मैंने जिद्द ठानी बाहर पढ़ने की

किताबों को सच्चा साथी समझा

मन पर नियंत्रन बनाए  रखा

आगे  बढ़ने की कसम खाई |

अपना मनोबल बढाया

अपने मन की सुनी

 यही मेरे काम आई

अब प्रसन्नता आई जीवन में |

आशा सक्सेना

12 सितंबर, 2023

आत्मविश्वास हो या नहीं

 

मुझे विश्वास हैअपने पर

 और किसी पर हो या नहीं  तुम पर तो है , किसी के प्यार  पर हो ना हो

तुम्हारे प्यार की बौछार  पर बहुत कुछ बन पाऊंगी किसी उच्च पद पर आसीन हो

कभी यदि विश्वास डगमगाया मन को आघात हुआ

सोचूंगी  किसे अपना कहूं|

 एक यही बात कौन अपना कौन पराया

मुझे मालूम है बुरे समय में कोई साथ नहीं देता

गैर तो गैर होते  अपने भी   पल्ला झाड़ लेते  

मन को चोटिल कर जाते |

समय बदलते ही फिर से अपने रिश्तों की याद दिला

मन को गुमराह करने की फिराक में रहते

पर जब सफल नहीं हो पाते पीछे से बुराई करते

इन सब बातों का मुझ पर असर नहीं होता

मेरा आत्मबल बना रहता |

पर खाली समय में बीती बातें मुझे सालतीं  

मुझे अपनी गलतियों का एहसास करातीं

हर बार मन कहता कुछ सीखों

व्यवहार में सुधार करो,

 मन भी  यही सुझाव बारंबार देता

फिर भी मुझे किसी और पर विश्वास नहीं होता

कभी मुझमें सुधार होगा या नहीं

बस एक ही बार मन में रहती

कभी सुधार आएगा नहीं

 सामाजिक मुझे  कभी होने  नहीं देगा  

09 सितंबर, 2023

क्या खोजती निगाहें तेरी

 क्या खोजे निगाहें तेरी 

किसे ढूँढें पर अभी तक 

कोई समाचार नहीं  उसका 

कहाँ राह में भटक गईं 

किसी से पूंछा तो होता 

अब तक यहाँ पहुँच ही जातीं 

कभी सोचा नहीं तुम राह भूल जाओगी 

मैंने तो कहा था किसी को लेने भेजूं 

 अपने को सक्षम समझा 

और  उसने इनकार किया 

धीरे से कोशिश की जब 

वह  सफल हुई 

पहुंची अपने गंतव्य तक |

आशा सक्सेना 


04 सितंबर, 2023

आए हो तो जाने की जल्दी क्या है

 आए हो तो जाने की ज़िद ना करो

यह कोई बात नहीं कि

 तुम मेरी भी ना सुनो

मुझे यूँँ ही बहका दो अपनी बातों में |

क्या राह भूल गए तुम

या तुमको किसी से

लगाव ना रहा यहाँ

केवल व्यवहार सतही रहा

मैंने कितनी कोशिश की

पुरानी यादों में तुम्हें व्यस्त करने की  

जब भी बीती यादें आईं

इधर उधर की बातों में उलझे रहे |

तुमने कभी सोचा नहीं

 हम क्या लगते हैंं तुम्हारे

किस पर आश्रित हैं सारे |

आज तक कोई पत्र ना लिखा

ना ही समाचार भेजा

बहका दिया बच्चों की तरह

मन को बहुत उदास किया |

क्या है यह न्याय तुम्हारा

हमको कुछ ना समझा

अन्यों की महफिल में

बहुत दूर किया सबसे हमको |

आशा 

मेरा वजूद

 

सुहानी रात में अकेले सड़क पर घूमना

मुझे कम ही पसंद आता

पर किसी का साथ पाकर 

मन में उत्साह भर आगे बढ़ना चाहता |

हर बार की तरह मैंने कुछ आगे ना देखा

न ही पीछे की ओर मुड़ कर देखा 

अपना अस्तित्व ही खो दिया |

अब मन पछता रहा है यह मैंने क्या किया

अब तक स्वप्नों में खोई रही

 अपने आप को स्वप्नों में खो कर

नही कुछ पाया मैंने |

अपने मन को और दुःख पहुँँचाया है

अपने वजूद को बहुत सम्हाल कर रखा था

अब हुआ वह दूर मुझ से

अब दुखी हुई बेगानी हुई अपने वजूद को खो कर

मुझको कोई जानता नहीं पहचानता नहीं

आज के समाज में |

यही दुःख मुझे अब सालने लगा है

अब मैं अंतरमुखी होती जा रही हूँ

ना किसी से मिलने जुलने का मन ही होता

एकांतवास की इच्छा बलवती हो उठी है |

आशा सक्सेना 

03 सितंबर, 2023

स्वप्न भरे मस्तिष्क में

 

स्वप्न भरे मस्तिष्क में होता जमाव  ऐस

व्यस्त हो जाती उनकाअर्थ निकालने में

किसी हद तक पहुँच भी जाती

 अर्थों का सार निकालने में |

जो मुझे पसंद आते उनको समेट लेती

अपने मन के किसी कौने में

किसी को भी जानने  नहीं देती

मेरे मस्तिष्क में क्या चल रहा है

इससे मुझे लाभ होगा या हानि  |

या कुछ भी प्राप्त नहीं होगा

बिना किसी की सही  सलाह के

या अपने तक ही सीमित होती

सीधी राह चल कर बहुत कुछ हाँसिल करती

अपनी बुद्धि को स्वच्छ और परिमार्जित रखती |

यही चाह थी मेरी जिससे  मैंने बहुत  कुछ सीखा

अपने को संतुलित किये रहती कभी धेर्य नहीं खोती

यही सीखा है मैंने किसी कार्य की जल्दी नहीं की

मुझे  आत्मनिर्भरता से बहुत बल मिलता |

किसी की गरज करनी नहीं पड़ती

अपना सोचा किया किसी पर नहीं थोपा

नाही किसी पर आश्रित रही स्वयं पर ही हुई निर्भर

यही हल निकाला मैंने स्वप्नों के संग्रह से |