22 सितंबर, 2023

हाइकु

१- दीप जलाए 

भजन गाते रहे 

लक्ष्मी पूजन 

२- है दीपावली 

घर स्वच्छ किया है 

दीप जलाए 

३-किसी ने कहा 

तुम कब आओगे 

दीबाली बीती 

४-तुम ना आए 

राह देखी तुम्हारी 

त्यौहार बीता 

५-जले दीपक 

लक्ष्मीं आ गई है 

आज के दिन 

६-खुशिया लाई 

दीपावली की रात 

वाग मती ने 


आशा सक्सेना 



20 सितंबर, 2023

साथ तुम्हें लाए गणनायक

 

कल आए गजानन गणनायक

साथ ले आगत को अपने

कल आए गजानन गणनायक

साथ ले आगत को अपने

ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष

माँगा  वर सर पर रखव़ा कर हाथ |

घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया

पूरे  स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन दिल खोल के

तुम्हारा  भी पूजन करवाया साथ में अपने रह कर

सभी ने तारीफ की आपकी और उसके स्नेह की|

ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष

माँगा  वर सर पर रखव़ा कर हाथ |

घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया

पूरे  स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन दिल खोल के

तुम्हारा  भी पूजन करवाया साथ में अपने रख  कर

कल आए गजानन गणनायक

साथ ले आगत को अपने

ड़ाला आसन आगत ने प्रभु के समक्ष

माँगा  वर सर पर रखव़ा कर हाथ |

घर के लोगों ने आगत का स्वागत किया

पूरे  स्नेह से फिर किया पूजन अर्चन दिल खोल के

तुम्हारा  भी पूजन करवाया साथ में अपने रह कर

सभी ने तारीफ की आपकी और उसके स्नेह की|

सभी ने की सराहना आपकी और उसके स्नेह की|

19 सितंबर, 2023

जय गणेश

 जय गणेश 

प्रथम पूज्य सदा 

पूजे जाते हो 


सुशोभित है 

मंदिर है आपका 

आज विशेष 


कोई कामना 

नहीं रही  अधूरी 

पास आ तेरे 


मैंने पुकारा 

दिल से तुमको ही  

हुई  सफल 


जय गणेश 

 सुख  करता गजानन 

स्वामी  मेरे 


अपनी ढपली अपने गीत

 अपने गीत अपनी ढपली 

किस तरह की दखलंदाजी 

नहीं किसी रचना में 

है स्वतः लिखी हुई हो |

जो आनंद आता है 

अपनी रचना के पढने में 

उसकी कोई बराबरी नहीं 

मन फूला फूला रहता है 

अपने कृतित्व को देखने में 

तब  और आनंद आता है 

दूसरों के प्रोत्साहन के शब्दों में |

जब अवसर मिलता है 

झूम झूम कर गाती हूँ 

बड़े प्यार से ढपली बजाती हूँ 

देर नहीं लगती 

सुनने वालों की दाद समेटने में 

यही धन संचित किया मैंने 

आज तक गीतों के मेले मैं

 |यह है आत्म मुग्धता का एक

सजीव उदाहरण जिसे मैंने अपनाया  

दिल खुशी से भर गया 

औ आ रों को भी हर्षाया है ||


आशा सक्सेना 

मेरी शुभ कामना

 

मेरी शुभकामना

मन आनंद विभोर है कि मेरी दीदी आदरणीया आशालता सक्सेना जी का एक और नवीन कविता संग्रह, ‘साँझ की बेलाशीघ्र ही प्रकाशित होने जा रहा है ! यह उनका अठारहवाँ कविता संग्रह है ! एक साहित्यकार के जीवन में यह निश्चित रूप से एक बहुत बड़ी उपलब्धि है ! ‘साँझ की बेलासे पूर्व उनके 17 कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ! और हमें गर्व है कि यह उपलब्धि मेरी दीदी श्रीमती आशा लता सक्सेना जी ने अपने अथक एवं अनवरत प्रयासों से हासिल की है !

दीदी में लेखन की गज़ब की क्षमता है और वे जो भी लिखती हैं वह पाठकों के हृदय पर अपनी अमिट छाप छोड़ जाता है ! कई वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से निरंतर ग्रस्त रहने के उपरान्त भी उनके लेखन की गति तनिक भी शिथिल नहीं हुई बल्कि बढ़ी ही है !

समय के साथ-साथ दीदी के लेखन में दिन दिन निखार आया है ! रचनाओं में संवेदना का स्तर सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हुआ है और उनके विषयों का फलक तो जैसे आकाश से भी विस्तृत है ! उन्होंने हर विषय पर अपनी कलम चलाई है ! उनके भावों में अतुलनीय गहराई है और वैचारिक स्तर पर भी रचनाएं चिंतनीय, गंभीर एवं भावप्रवण हैं ! उनकी रचनाओं की भाषा सरल, सहज एवं सम्प्रेषणीय है और पाठकों के हृदय पर सीधे दस्तक देती है ! मुझे बहुत गर्व है कि दीदी साहित्य के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं और उनका लेखन नवोदित साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का अद्भुत स्रोत है ! मेरी अनंत शुभकामनाएं उनके साथ हैं ! ‘साँझ की बेलाकी मुझे अधीरता से प्रतीक्षा है ! आशा है यह जल्दी ही पाठकों के हाथ में होगी और अन्य पुस्तकों की भाँति ही इसे भी पाठकों का प्यार प्रतिसाद अवश्य मिलेगा !

अनंत शुभकामनाओं के साथ,

 

साधना वैद

33/23, आदर्श नगर, रकाब गंज

आगरा, उत्तर प्रदेश

18 सितंबर, 2023

शब्दों का मान

 

खोजा मन के अंदर बाहर 

सिर्फ वही नहीं

दो शब्द रंगे गए

दूसरे शब्दों में वे  हिरा गए कहीं

मेरे भाव भी गुम हैं

किसी अंधेरी कोठरी में |

मेरी  खुशी कहीं गुम हो गई

जब ठुकराई गई सारे समाज से  

किसी ने ना अपनाया  समाज में

दुःख बहुत हुआ

खुद के नकारे जाने पर |

  यह हाल है आज

शब्दों की दुनिया का

सम्हाल नहीं पाए खुद को

नाही अन्यों को|

जो सकारथ हुआ |

 है निराली शब्दों  की दुनिया

जिसने भी चाहा उनको

संपन्न किया भाषा को

उसके लालित्य को |

उनका उपयोग किया दिल से

पलट कर ना देखा क्या लिखा

उसका अर्थ क्या निकला

किसने सही रूप दिया उसको |

आशा सक्सेना    

  

17 सितंबर, 2023

आस पास जल ही जल

 हर ओरजल ही जल 

जलमग्न हुए नदी किनारे के

 कच्चे मकान  |

बड़े कष्टों से बनाया था जिनको 

वह देखती रही असहाय सी 

कुछ भी उसके हाथों में न था

 केवल देखने के सिवाय |

 तिनका तिनका  जमा किया  सामान को 

बहुत परिश्रम किया था

 एक एक सामान सहेजने में  

मन में रोने के सिवाय कुछ ना था |

प्रकृति ने कोप ऐसा किया 

जीना मुश्किल कर दिया 

कभी मन ने सोचा 

यह सजा तो नहीं 

ईश्वर प्रदत्त 

नोई भूल यो नहीं हुई 

आज वन्दना में |


आशा सक्सेना 


 सुख दुःख सब याद करते

पर दुःख से कम कोई नहीं

जितना उसे याद करते

उसे भूल नहीं पाते

सभी जानना चाहते कारण उदासी का

कहते गम खाओ किसी से पंगा ना लो

समझोता करना भी सीखो

खुशियों से हाथ मिलाओ

पर तुम इनसे समझोता ना कर पाते

मन ही मन असंतुष्ट रहते

कोशिश भी करते पर असफलता ही हाथ लगती

अपना प्रारब्ध मान इसे

गहरी उदासी में खो जाते

तभी मन की आवाज सुनते

फिर से कोशिशों में जुटते

मन कहता कभी उसकी भी सुनो

फिरसे प्रयत्नों में जुट जाते

और सफलता पाते

कभी हारने को तैयार  नहीं होते  

यही सीखा है समाज से आगे बढ़ो

हार को नकार दो समय का सदुपयोग करो उपहार में जीत को पल्ले से बाधो

आगे बढ़ने की ठानो सही राह पर चलकर

सलाह को सत्कार करो |