१-सारी दुनिया
रंगा रंग हुई है
कितनी प्यारी
२-रगों की रात
सज रही है कहीं
देखो तो ज़रा
३-रंग ही रंग
बिखरे यहाँ वहां
उसने देखा
४- पांच रंग हैं
आसमान में सजे
दो गौण रहे
५-होली के रंग
सजाए हैं थाली में
कान्हां को रंगा
आशा सक्सेना
१-सारी दुनिया
रंगा रंग हुई है
कितनी प्यारी
२-रगों की रात
सज रही है कहीं
देखो तो ज़रा
३-रंग ही रंग
बिखरे यहाँ वहां
उसने देखा
४- पांच रंग हैं
आसमान में सजे
दो गौण रहे
५-होली के रंग
सजाए हैं थाली में
कान्हां को रंगा
आशा सक्सेना
कितने रंग जीवन में बिखरे
जिन्दगी के कई रंग
देखने को
मिले इस जहां मे |
कोई रंग कैसा कहाँ ठहरा
या लहराया जाने कहाँ |
जो रंग मन को भाया
पहले पास नजर आया
जब पास जाना चाहा
और दूर होता गया |
मन को ठेस लगी दूरी देख
पर फिर मन को समझाया
हर वह वस्तु जरूरी नहीं कि मिले
यदि बिना कष्ट मिल जाएगी
कितना आनंद आएगा यह मालूम नहीं|
यही रंग जीवन में जब दिखाई देगा
अदभुद नजारा होगा
जबबिखरे रंग दिखाई देगे चारो ओर
लोग जानना चाहेगे यह प्राप्ति कैसे मिली
बताने का आनन्द कुछ और ही होगा |
आशा सक्सेना
.अभी तक कुछ न कहा
मन को नियंत्रण में रखा
ना ही कोई आवश्यकता का इजहार किया
यह नहीं भूलो कि मैं भी हूँ मनुष्य
मेरी भी कुछ अपेक्षाएं हैं तुमसे |
जब भी दूसरों को देखा मन में असंतुलन हुआ
इससे मुझे दूर रखो सामान्य सा जीवन जीने दो
मेरी बहुत आवश्यकताएं नहीं होगी
जीवन सहज रूप से चलेगा |
तुमसे ही अपेक्षा रहती है
उस पर भी नियंत्रण हो जाएगा
पर समय लगेगा है यह कठिन पर असंभव नहीं
यह मैं जान गई हूँ खुद पर ही नियंत्रण रखूंगी |
यही हितकर होगा मेरे लिए
एकाग्र चित्य होना होगा आवश्यक
यह हो पाएगा प्रभु की शरण में जाकर
मन पर नियंत्रण रख कर |
यही है जीवन की खुश हाली का राज
मुझे खुद पर ही संतुलन बनाकर रखना होगा
यही साझ में आया है मेरे
इसी से भवसागर से पार उतर पाऊंगी
आशा सक्सेना
एक दिन मेरी छोटी बहन ने
मुझसे पूंछा आपको इतनी कहानी कैसे याद हैं |मैंने अपनी यादों की किताब खोली और एक
पन्ना खोला |देखी लिस्ट उन कहानियों की जो कभी रात को मम्मीं सुनाया करतीं थी |
दिमाग पर जोर डाला तब
कहानियों का पिटारा खुला |मैंने उसे रोज
एक कहानी सुनाने का वादा किया |
नजाने कितनी पुरानी
कहानियां याद आईं उसे बड़ी प्रसन्नता होती थी कहानी सुन कर |उसने मुझे प्रोत्साहित
किया उन कहानियों को लिपिबद्ध करने के लिए फिर भी मेरी हिम्मत नहीं हुई कहानी
लिखने की |बार बार कहने से अब कोशिश करूंगी सोचा |मेरख्याल था ये सुनी सुनाई कहानी जाने किसने लिखी होंगी
उनको अपने नाम से कैसे लिखूंगी |पर बार बार की जिद्द ने प्रयत्न करने के लिए बाध्य
किया है –
आज की रात सपनों ने डेरा डाला
मेरी नींद पर जब तक दिन ना हुआ
सुबह होते ही वे कहाँ गुम हो गये
बहुत खोजा
मैंने पर असफल रही |
सब क्या क्यूँ कैसे में उलझे रहे
जिससे भी
पूंछा कारण सपनों के आने का
सब ने गोलमाल उत्तर दिया
मेरी क्षुधा कोई शांत न कर पाया |
मेरी बेचैनी इतनी बढी
कि डाक्टरों तक तारों तक जा पहुंची
जो लोग बहुत चिंता करते हैं
उनका मन शांत नहीं रहता सपने देखते हैं |
आशा सक्सेना
१-कुछ कहना
सुनना नहीं अब
यादें ही बाक़ी
२--तुम्हारे बिना
मन भटकता है
याद सताती
३ -कैसे भूलती
जिसे ना भूली कभी
पल भर को
४ -तन्मय रही
अपनी यादों में खोई
व्यस्तता रही
आशा सक्सेना