मेरा रोम रोम हुआ
पुलकित
तुम्हारी प्रगति देख
मैंने कभी कल्पना
न की थी कि
तुम पर असर होगा
किसी रोकटोक का
मन बाग बाग़ हुआ
तुम्हारी
यह जादूगिरी देख कर
तुम्हारी यही कला
मुझे क्यों नहीं आती
आजतक बिचारों में
खोई रही
कोई हल नजर ना
आया अभी तक |
आशा सक्सेना