१-कहना नहीं
कैसे ना बहकाये
डर नहीं है
२-मीठी धुन में
गीत बना उसका
कविता पढ़े
३- उसे चाहिए
मेरे प्रेम की चाह
किसी के लिए
४-कोई ना जाने
मेरे मन की बात
यही है ख़ास
५-तेरी मुझसे
बात छुपी नहीं है
यही विशेष
आशा सक्सेना
१-कहना नहीं
कैसे ना बहकाये
डर नहीं है
२-मीठी धुन में
गीत बना उसका
कविता पढ़े
३- उसे चाहिए
मेरे प्रेम की चाह
किसी के लिए
४-कोई ना जाने
मेरे मन की बात
यही है ख़ास
५-तेरी मुझसे
बात छुपी नहीं है
यही विशेष
आशा सक्सेना
जब याद आई तुम्हारी
जी भर कर रोई
तब भी मन न भरा
फिर क्या करती |
कोई नहीं था
दो बोल मीठे बोलने को
थी असहाय अकेली
खोजती राह भी कैसे |
सोचा जब अकेले ही जाना है
फिर आशा किसी से क्यों ?
अपने को बदल न पाई
आज तक फिर खुद में
परिवर्तन की आशा क्यों ?
यही हाल रहा यदि
कुछ न कर पाऊँगी
सफलता की देहरी
तक न छू पाऊंगी |
हूँ अकेली उदास
किसी का साथ नहीं है
कोई हमसफर नहीं है
जिसका हाथ हो सर पर |
आशा सक्सेना
है वह कितना अकेला सहभागियों के बिना
पहले वह सोचता था उसे किसी की जरूरत नहीं
तभी चला आया अकेले महफिल में |
यहाँ देखा वह ही अकेला था
कोई न था उसका साथ देने के लिए
कीट पतंगेपूँछ रहेथे कहांगए तुम्हारे सहचर
कोई जबाव न था उसके पास
तेल और बाती ने दी दस्तक दरवाजे पर
दीपक ने झांका द्वार खोल दिया
समीर ने भी साथ दिया
जल उठी दीप शिखा अपनों की महफिल में
कभी घटी कही बढ़ी वह महफिल में
फिर भी कमीं नजर आई दीपक को
रहा अन्धेरा ही नीचे उसके मिट न सका
दीपशिखा थरथरा कर कांपी
समीर की गति देख कर
और विलीन होगई व्योम में
दीपक ठगा सा देखता रहा
आशा सक्सेना
कभी जो कुलाचें भरती थीं
जंगल में हिरनी सी
हुई धीर गंभीर
तुम्हारा साथ पा |
यह करिश्मा हुआ कैसे
यह परिवर्तन आया कैसे
तुमने क्या जादू किया
वह भूली चंचल चपल चाल |
उसने कोई विचार किया
किसी ने टोका या रोका
या उसने गंभीरता से लिया
कारण समझ न आया |
जो भी हुआ अच्छा हुआ
साथ तुम्हारा पाकर
उसमें जो आया परिवर्तन
उसको धीर गंभीर बनाया |
आशा सक्सेना
त्रेतायुग में जन्म लिया
मानव का अवतार लिया
राजा दशरथ के आँगन में
माता कौशल्या की गोद में खेले
केकई माँ ने भर पूर प्यार किया
जब झूले हिंडोले में
खुश हुए किलकारी भरी |
सारा महल राममय हुआ
घुटने
घुटने चले राम
बचपन ने
अदाए दिखलाई
सब का मन मोहा |
ऋषि विश्वामित्र एक दिन आए
राम को उनने मांग लिया राजा दशरथ से
कारण जब पूंछा राजा ने,
गुरुकुल ले
जाने का कारण बहुत सटीक था
विश्वामित्र ने बताया मुनी को क्रोध वर्जित होता है
साहस था राम में गजब का
उनके द्वारा किये बचाव से
शांती से पूजन हुआ संभव
यही कारण
हुआ गुरुकुल ले जाने का |
विश्वामित्र के साथ गए राम लक्ष्मण सीता स्वयंबर में
कई राजा रहे नाकाम शिव का पिनाक धनुष उठाने में
राजा जनक भी हुए उदास यह नाकामयाबी देख
मुनि का आदेश पा राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढाई
सीता ने
वरमाला डाली स्वयम्बर हुआ पूर्ण
चौहदा वर्ष वन में रहे राम, राजा दशरथ के आदेश पर
रहे तपस्वी राजा की तरह माता केकई की मांग पर
फिर से अयोध्या आए राज्य सम्हाला प्रजावत्सल हुए
पांचसो
वर्ष के बाद नजारा कुछऔर हुआ
कठिन विरोध झेले कार सेवकों ने फिर
राम लल्ला की प्राण प्रतीष्ठा का दिन आया
भव्य मंदिर बनवाया श्री मोदी और श्री योगी ने |
जनता में अपार श्रद्धा देखी गई
सारी अयोद्द्या राममय हो गई
बचपन में राम कैसे दिखाते थे ,
दिखाई दिया मूर्ति में
मूर्ति सजीव और आकर्षक है इतनी कि
निगाहें ठहर नहीं पाती उस पर |
आशा सक्सेना
मुझे यह क्या हुआ है
मन हर कार्य से उचटा हुआ है
मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता
कभी सोचा न था ऐसे भी दिन आएगें |
मुझे अब कुछ नहीं सूझता
लगता है मैं कुछ न कर पाऊंगी
धरती पर बोझ हो कर रह गई हूँ
जीवन में कुछ ना कर पाई |
यही मुझे अब खलता है
अकर्मण्य आखिर कैसे हो गई हूँ
यह तक जान न सकी अब तक
यह कैसी अजीब बात है |
आशा सक्सेना
एक दिन की बात है सुबह बहुत ठण्ड थी |मैंने अपनी बाई से
पूंछा इतनी देर कैसे हुई |वह हंस कर बोली मुझे घर का सारा काम
कर के आना पड़ता है |आज नीद नहीं खुली इसी से देर हुई |उसदिन
मुझे गुस्सा आगया मैंने उससे कहा तुम मुझे जबाब देती हो जब काम
करने आई हो तब समय का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा |वह इस बात
से नाराज हो गई |बोली सम्हालो अपना घर मुझे क्या खरीद लिया है
और न जाने क्या बकने लगी और अपना सामान उठा कर चल दी |
उस समय तो मैंने काम कर लिया पर ठण्ड का प्रभाव दिखने लगा
मुझ पर दिखने लगा सरदी ने अपना रंग दिखाया और मैं बीमार पड़ गई|
तब उसका कटु भाषण मेरे कानों में गूंजने लगा क्या हमारे जान नहीं है
हमको सरदी नहीं लगती | उसका मन न था काम पर आने का
पर यह जानते हुए कि मेरी तबियत ठीक नहीं रहती उसने कहा था
क्या कुछ छुट्टीनहीं मिल सकती मैंने उसे निकाल्तो दिया पर दया नहीं आई उस पर
आशा सक्सेना