31 मई, 2014
30 मई, 2014
28 मई, 2014
रे मन मेरे (हाईकू )
रे मन मेरे
क्यूं उलझा रहता
चैन गवाता |
तारीफ तेरी
किस बात के लिए
जख्म दे गयी |
बाण नैनों के
नागिन जैसी जुल्फें
दीवाना करें |
दो पटरियां
चांदनी रात कहे
दूर जाना है |
दो पटरियां
मिल न पातीं कभी
साथ चलतीं |
जाना चाहती
दूर क्षितिज तक
भावों को लिए |
पक्षी चहका
छु कर क्षितिज को
क्षमता जागी |
दूर क्षितिज तक
भावों को लिए |
पक्षी चहका
छु कर क्षितिज को
क्षमता जागी |
हाथ बढ़ाया
मिलन की आस में
क्षितिज तक |
आशा
मिलन की आस में
क्षितिज तक |
आशा
27 मई, 2014
कमीं कहाँ ?
सोया था सुख निंदिया में
केवल स्वप्नों में जिया
सच्चाई से दूर बहुत
अपनी दुनिया में रहा |
एक स्वप्न में एक दिन
खुद को किया बंद कमरे में
पुस्तकों से घिरा हुआ
बेमतलब पन्ने पलट रहा |
किताब ने शिकायत की
पूरे वर्ष अवहेलना झेली
तुमने कद्र न की
अब शोर सहन क्यूं न कर पाते|
रात भर जगने का
सब को भ्रम में रखने का
सब को भ्रम में रखने का
पढ़ने का नाटक
भी तो कम न किया |
रात रात में जाग जाग कर
बिजली का खर्च बढ़ाया
सब की आँखों में धुल झोंक
कंप्यूटर भी खूब चलाया |
यदि पढ़ लिया होता
यह हाल न होता
अपना मन टटोलो
किसका नुक्सान हुआ ?
धबराहट में नींद खुल गई
था तरवतर पसीने में
सोच में पड़ गया
कमी कहाँ थी अध्यन में ?
25 मई, 2014
व्यथा पिता की
हारा तन के संताप से
मन के उत्पात से
जीवन व्यर्थ हुआ
जग के प्रपंचों से |
बचपन में अकेला था
कोई मित्र न मेरा था
केवल घर ही मेरा था
पर बीमारी ने घेरा था |
यौवन में पा संगिनी
घर में देखा स्वप्न
प्रजातंत्र लाने का
हर बात के लिए
सबसे साझा करने का |
सब ने जाना केवल
अधिकार बोलने का
आज है ना कोई वजूद मेरा
ना ही कोई आवाज
उस शोर में दब कर रह गई है
आज मेरी पहिचान |
बेबस मूक दर्शक हूँ
अपनी व्यथा किससे कहूँ
पिस रहा हूँ
चक्की के दो पाटों में |
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