01 नवंबर, 2015

मुक्तक

है आज करवा चौथ प्रिये 
जलाए दीप तुम्हारे लिए 
चाँद देखें या तुम्हें 
तुम्ही मन में समाए हुए |

जब से तुम्हें अपना लिया
प्यार का इजहार किया
 रंग तुम्हारा   ऐसा चढ़ा
दूजा रंग न भाया पिया |

जो कभी दो जिस्म एक जान हुआ करते थे
जिक्र हर बात का आपस में किया करते थे
पर आशियाँ उजड़ते ही ,एक बड़ा बदलाव आया
फिर से राहें अलग हुईं ,वे मुंह फेर लिया करते थे |

जब बुरे विचार मन में आते हैं
अंतस खोखला कर जाते हैं
तब प्यार भरी एक थपकी से
हम उनसे बच पाते हैं |

आशा






30 अक्तूबर, 2015

वाणी अनमोल

 

मीठी वाणी दुःख हरती 
कटु भाषा
 शूल सी चुभती 
यही शूल
 दारुण दुःख देते 
सहज कभी
 ना होने देते
मनोभाव
 जिव्हा तक आते 
चाहे जब
फिसल जाते 
बापिस लौट नहीं पाते 
कटुता फैलाते 
आदत से
बाज न आते 
गहरे घाव
 मगर कर जाते 
सुख चैन मन का
हर लेते 
मुसीबतों का
कारण बनते 
वाणी अनमोल
 रस की पगी 
होती मन का दर्पण
 जीवन पर्यंत
 शब्दों का वह  जखीरा 
 याद किया जाता 
यदि तोल मोल कर
 बोला जाता 
संभाषण सब को सुहाता |

आशा




28 अक्तूबर, 2015

मुक्तक मोती


ना कजरे की धार चाहिए
ना नयनों के वार चाहिए
हो आभा प्रचुर मुखारबिंद पर
उसका ही खुमार चाहिए |


शब्दों के ना वार चाहिए
प्यार भरी फुहार चाहिए
नियामत मिले न मिले
छोटा सा उपहार चाहिए |


दृष्टि तेरी मैली सी
नहीं धूप रुपहली सी
कभी तो परदा उठता
ना लगती तू पहेली सी |



जब नजर से नजर मिली
कली मन की खिली
पर नजर हटते ही
प्रसन्नता धूल में मिली |
आशा




आशा


आशा

26 अक्तूबर, 2015

अंकुश


छड़ी जंग मन और ह्रदय में के लिए चित्र परिणाम


एक दिन उसने कहा
कभी दूर न जाना
स्वप्नों में आना
आ कर न जाना |
कहा उसका मान लिया
लगाया अंकुश प्रवाह पर
कुछ क्षण ठहराना चाहा 
रुकने का मन बनाया |
मन को बंधन स्वीकार नहीं
रुकना उसकी फितरत नहीं
पर जाने की चाह नहीं
दुविधा आन पड़ी |
विद्रोही आदत से मजबूर
अस्थिर अधीर मन
कशमकश से विचलित
बगावत पर उतर आया |
छिड़ी जंग मन और ह्रदय में
हो कौन  विजयी रब  जाने
है जान सांसत में अभी तो
किसकी माने न माने |
भावुकता कम न होती
बुद्धि भी हावी होती
उलझन बढ़ती  जाती
विचार शून्य सी हो जाती |
यही हाल यदि रहा
कैसे निर्णय तक पहुंचूंगी
मन पर नियंत्रण न होगा
ना ही दिल काबू में होगा |
नीव जीवन की हिल जाएगी 
मंजिल दूर नजर आयेगी 
अनिर्णय की स्थिति में 
वह बोझ हो जाएगी |
आशा



24 अक्तूबर, 2015

बदलाव


daalon ke bhaav के लिए चित्र परिणाम
पहले कहा जाता था
दाल दलिया से
 काम चल जाता है
सस्ते में गुजारा हो जाता है
सब्जी भाजी मिले न मिले
दाल रोटी से
 पेट भर जाता है
बच्चों को माँ कहती थी
अरहर दाल यदि खाओगे
 प्रोटीन प्रचुर पाओगे
साथ ही गुनगुनाती थी
दाल रोटी खाओ
 प्रभु के गुण गाओ
अब बदलाव भारी आया है
जब से उछाल
 भावों में आया है
भाषा बदल गई है
अब कहा जाता है
लौकी पालक से
 काम चल जाएगा
मंहगी दाल कौन खाएगा
जंक फूड से काम चलाओ
यूं ही मझे ना सताओ
दाल बनाना नहीं जरूरी 
समझो मेरी मजबूरी 
सब्जी आलू की खाने से
मन तो भर ही जाएगा
दाल की कमी
 तब न खलेगी
जेब अधिक खाली ना होगी |
आशा