03 मार्च, 2017

एक किरण आशा की

चारो ओर छाया अन्धेरा 
उजाले की इक किरण ढूँढते हैं 
 गद्दारों से घिरे हुए हैं
ईमान की एक झलक ढूँढते हैं 
ईमान पर जो खरी उतारे 
ऐसी एक शक्सियत चाहते  हैं
जिस दिन रूबरू होंगे उससे
उन पलों की तारीख ढूँढते हैं 
शायद कभी वह मिल जाए 
उस पल का सुकून खोजते  हैं
आशा पर टिके  हैं
 निराशा से कोसों दूर
मन का संबल खोजते हैं |
आशा










01 मार्च, 2017

लच्छे बातों के


चाहे जब तुम्हारा आना 
बातों के लच्छों से बहकाना 
यह क्यूँ भूल गए 
आग से खेलोगे तो 
जल जाओगे
उससे दूर रहे अगर 
धुंआ तो उठेगा पर  अधिक नहीं
वह दूरी तुमसे बना लेगी 
भूल जाएगी तुम्हारा आना 
सामीप्य तुमसे बढ़ाना 
इन बातों में तथ्य नहीं है 
 तुम  जानते हो अन्य सब नहीं
है अनुचित 
अनजान बने रहना 
बातों से नासमझ को बहकाना
राह सही क्यूँ नहीं चुनते 
सही राह पर यदि न चलोगे 
गिर जाओगे सब की निगाहों में 
बहकाना भूल जाओगे उसे |
आशा







27 फ़रवरी, 2017

फागुन आते ही



 मंद मंद पवन चले
गेहूं की बालियाँ
लहराएं बल खाएं
खेतों में हलचल मचाएं
सांध्य सुन्दरी के आते ही
आदित्य लुकाछिपी खेले 
बालियों के पीछे से
खेले खेल संग उनके
आसमा भी हो जाए सुनहरा
साथ उनके खेलना चाहे
अपनी छाप छोड़ना चाहे
पर बालियाँ थकित चकित हो
अन्धकार को अपनाना चाहें
सोने का मन बनाएं
सूरज अस्ताचल को जाए
अन्धकार के स्वागत में
चन्दा तारे चमचमाएँ |
आशा

23 फ़रवरी, 2017

शिव पार्वती विवाह


हिमाचल और मैना ने 
की कठिन तपस्या पर्वत पर 
पार्वती पा धन्य  हुए 
पूरी हुई आकांक्षा |
  खेली कूदीं बढ़ने लगीं 
समय कहीं पीछे छूटा 
बढ़ती पुत्री की वय देख 
 जागी जामाता पाने की इच्छा |
हिमाचल ने बात चलाई 
बहुत से रिश्ते आए 
पर शिव सा कोई न था 
भोले को पाना सरल न था |
शिव जी को पाने के लिए 
कठिन तपस्या करने चलीं
 पर्ण तक का  त्याग किया 
अपर्णा तभी वे कहलाईं |
शिव  आए उन्हें व्याहने 
अद्भुद बरात अपनी लाये
भूत प्रेत आदि सजे थे
 अपने अपने रंग में |
जब देखी बारात ऐसी 
बच्चे तक भयभीत हुए 
सोचा लोगों ने  भारी मन से
 क्या सोच दिया बेटी को |
शिवजी थे नंदी पर सवार 
अद्भुद छटा थी उनकी 
रूप रंग साज सज्जा में 
 कोई सानी न थी उनकी  |
दौनों बंधे अटूट बंधन में 
शिव रात्रि के अवसर पर
सबने दिया आशीष उनको 
जीवन सुखमय  होने को |
आशा





चित्र पत्र



19 फ़रवरी, 2017

अनजाने में


जब से देखा उसे यहाँ 
चाल ही बदल गई है 
बिना पहचाने अनजाने में 
वह चैन ले गई है |
कभी सोचा न था इस कदर 
दिल फैंक  वह होगी 
उसके बिना जिन्दगी 
बेरंग हो गई है |
उसके बिना यहाँ आना 
अच्छा नहीं लगता 
साथ  जब वह होती
जोडी बेमिसाल होती |
झरते मुंह से पुष्प
 खनखनाती आवाज उसकी 
उत्सुकता जगाती 
उसने क्या कहा होगा |
कभी यहाँ कभी वहां 
बिजली सी कौंध जाती  
वह जब भी यहाँ आती 
सोए जज्बात जगा जाती |
आशा

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16 फ़रवरी, 2017

संस्कार




आज की पीढ़ी
हो रही बेलगाम
संस्कार हीन |

भव्य शहर
संस्कार हैं विदेशी
अपने नहीं |

है महां मूर्ख
संस्कार न जानता
पिछड़ जाता |

संस्कार मिले
माता और पिता से
है भाग्यशाली |
आशा