27 जून, 2020

वर्षा की दस्तक




जब काली घटाएं  छाईं आसमान में
बादल गरजे बिजली कड़की 
बारिश की बूंदों ने की  अमृत की वर्षा 
बदले मौसम  में धरा ने ली अंगड़ाई  |
चहु ओर छाई हरियाली खेतों में
हुआ मन विभोर इस  अनुपम छटा को  देख 
इसी मनोरम दृश्य को देख 
आत्मसात करने की इच्छा हुई बलवती |
गर्म मौसम की तल्खी  हुई कम
ठण्डी बयार बह चली जिस ओर 
नन्हीं नन्हीं बूंदों ने किया सराबोर
घर आँगन खेतों को हो कर विभोर |
 तरसी निगाहें इसे आत्मसात करने को 
प्रकृति की अनमोल छवि मन में उतारने को 
मनोभाव मन में दबा न सकी 
कागज़ पर कलम भी खूब चली |
आशा



                             

26 जून, 2020

आदत नशे की

सोच रहा था एक बात रमैया की कही
जीवन में नशा न किया तो क्या किया
बार बार गूँज रहे थे शब्द उसके कानों में  
पर भूला नुक्सान कितना होगा तन मन  को |
अपना आपा खोकर सड़क पर झूमते झामते
  गिरते पड़ते लोगों को आए दिन देखता था
हर बार सोचता  है यह आदत कैसी
क्यूँ गुलाम होते लोग ऐसी आदतों के |
दिन में जाने कितने वादे कितनी कसमें खाते
शाम पड़े ही भूल जाते कहने लगते
 कौनसे वादे कैसी कसमें ?मैंने कब किये?
 पीने में है बुराई क्या? गम ही तो दूर करते हैं अपने |
यदि खुश होते वे  कहते  
मौज मस्ती में  पी ली है ज़रा सी
इसमें बुराई क्या है?
 मित्रों ने पिला दी है रोज कौन पीता पिलाता है |
अपनी बात पर अडिग रहने को अनेक तर्क देते
यही सब  सोचते एक मधुशाला के सामने से गुजरा
दूर से ही हाथ जोड़े प्रभु के |
कोई भी नशा सुखकर नहीं होता
कितने धर उजड़े हैं नशे की आदतों से
 शिक्षा मिली है उसे इनसे दूर रहने की
तभी यह नशे की बीमारी गले नहीं पड़ी है |
आशा  

    

25 जून, 2020

पलट कर जब देखा उसने

                               पलट कर जब उसने  देखा विगत में
यादों का पिटारा  खुलने लगा
पहुच गया उसका मन मस्तिष्क
बीते  दिनों की यादों में |
पहले कल्पनाओं  में खोई रहती थी
सुख निंदिया सोई रहती थी   
रही  वास्तविकता से दूर बहुत
जीवन कितना है कठिन कभी सोचा नहीं  था |
एक दिन चिलचिलाती धुप में
पैर पड़े जब कठोर  धरा  पर
वास्तविकता से हुआ सामना
झुलसा तन मन ऊष्मा की तीव्रता से |
पहले  वह सहन न कर पाई
उलटे पैर पलायन का हुआ मन
 सोचा जाने क्यूँ 
मुसीबत गले लगाई|
 फिर विचारों ने करवट बदली
और लोग भी तो जीते है
उसी घुटन भरे माहोल में
फिर वह क्यूँ पीछे हटने की सोचे |
तब दृढता से कदम उठाए आगे बढी
 बापसी का ख्याल न आया मन में
यही दृढ़ता आत्मसंयम तो जरूरी है
 किसी  कार्य को प्रारम्भ  करने में   |
आशा





24 जून, 2020

जब भी कोरा कागज़ देखा





जब भी कोरा कागज़ देखा
पत्र तुम्हें लिखना चाहा
लिखने के लिए स्याही न चुनी
आँसुओं में घुले काजल को चुना
जब वे भी जान न डाल पाये
मुझे पसंद नहीं आये
अजीब सा जुनून चढ़ा
अपने खून से पत्र लिखा
यह केवल पत्र नहीं है
मेरा दिल है
जब तक जवाब नहीं आयेगा
उसको चैन नहीं आयेगा
चाहे जितने भी व्यस्त रहो
कुछ तो समय निकाल लेना
उत्तर ज़रूर उसका देना
निराश मुझे नहीं करना
जितनी बार उसे पढूँगी
तुम्हें निकट महसूस करूँगी
फिर एक नये उत्साह से
और अधिक विश्वास से  
तुम्हें कई पत्र लिखूँगी
जब भी उनको पढूँगी
मैं तुम में खोती जाऊँगी
आत्म विभोर हो जाऊँगी |
आशा

23 जून, 2020

हाईकू

 १-हो बेमिसाल
कोई नहीं तुमसा
तेरे प्यार सा

२- माँ की ममता
कोई उससा नहीं
 उसके सिवाय

३- आँचल तेरा
इतना हैविस्तृत
नापा न जाए

४ -प्यार ही प्यार
फैला है यहाँ वहां
नफरत  ना

५--नयन मूँद
 हो योग की मुद्रा में
करो ध्यान


६ -सावधान हो
कोरोना से  बचाव
है आवश्यक

आशा




22 जून, 2020

जिन्दगी है कितने दिनों की






जिन्दगी के होंगे कितने दिन
कोई भी  बता नहीं पाता
जन्म की तारीख तो याद रह जाती है
पर मृत्यु अथिति सी आता है
 आहट तक नहीं होती उसके आने की
परिजनों को रुला कर चली जाती है
खुद को तो यह  अहसास भी नहीं होता
कब कहाँ कैसे आई
आँखें बंद होते ही प्राण छूटते ही
 मनुज खो जाता है
गहन अन्धकार के आगोश में
वह तब क्या सोचता है
आज तक कोई नहीं जान पाया
यह अनजानी गुत्थी है
कोई भी  हल नहीं कर पाया
 इस अवस्था से बाहर निकल
किसी ने बयान नहीं किया
आखिर वह कहाँ रहा कैसे रहा
 अनुभव इन पलों का  
                  अपने  साथ ही ले गया |
                      आशा