वह चाहती नहीं कि
कोई तुझसे कुछ कहे
है बस अधिकार उसी का
जो भी कहे वही कहे
तू भी कुछ न कहे
केवल सुने
और उसी से जुड़ा रहे
कोई अन्य अपना
वर्चस्व न जता पाए
ना ही तुझे भरमाए
तू है दूर मीलों उससे
फिर भी हर आहट
तेरी ही लगती है
तुझे अगर ठोकर लगे
वह जान लेती है
कुछ कर तो नहीं सकती
पर सचेत कर देती है
है माँ तेरी
भला चाहती है तेरा
उसे स्वीकार नहीं
तू मनमानी करे
कठिन परिस्थिति से गुजरे
यदि कुछ उसकी सुने
विचार करे
सलाह का सत्कार करे
तभी शायद तुझे
सही राह मिल पाएगी
तेरी दशा सुधर पाएगी |
आशा