09 मई, 2011

A bookworm

A book worm crammed the whole book without knowing what was he doing .

Was that justice to book and its writer .

He did not know about the author too ,

By the way he had met a person in a party .

He was trying to impress him so he recited some lines of that book .

That fellow came to him and asked "From where lines are borrowed ."

He said,"Ido not know much about it ।I think I have coined them."

"Do you know about its author ."

Again he said "I do not know ."

"

"It is stupid to behave like a fool ."He murmured .

You have borrowed lines from the book written by me .

He was so ashamed that did not turn up in the hall again

Asha

08 मई, 2011

भावना असुरक्षा की


है बेचैन असुरक्षित
अपनी राह तलाश रही
जीवन की शाम के
लिए आशियाना खोज रही |
अपनों ने किनारा किया
बोझ उसे समझा
बेगानों में अपने पन का
अहसास तलाश रही |
क्या कुछ नहीं किया उसने
उन सब के लिए
जो आज भुला बैठे उसे
अपने में ही व्यस्त हुए |
आज भी याद है उसे
कैसे उन्हें पाला पोसा
खुद ने कठिनाई झेली
पर उनकी प्रगति नहीं रोकी |
आज वही उसे छोड़ गए
वृद्ध आश्रम के कौने में
असुरक्षा की भावना
मन में समा गयी है |
ना कभी ममता जागी
ना ही उसके कष्टों पर
मन में कभी मलाल आया
अपने ही घर के लिए
वह पराई हो गयी |
आज मातृ दिवस मनाया तो क्या
जाने कितनी माँ हैं ऐसी
जो स्नेह से हैं वंचित
इस संवेदन शून्य दुनिया में
भरी हुई असुरक्षा से
जूझ रही हैं जिंदगी से |


आशा


06 मई, 2011

प्यारी माँ



तुझ से लिपट कर सोने में
जो सुकून मिलता था
तेरी थपकियों का जो प्रभाव होता था
वह अब कहाँ |
जब बहुत भूख सताती थी
सहन नहीं कर पाती थी
तब रोटी में नमक लगा
पपुआ बना
जल्दी से खिलाती थी
मेरा सर सहलाती थी |
वह छुअन वह ममता
अब
कहाँ |
जब स्कूल से आती हूँ
बेहाल थकी होती हूँ
कुछ खाने का सोचती भी हूँ
पर मन नहीं होता
तेरे हाथों से बने खाने का
अब स्वाद कहाँ |
जब भी शैतानी करती थी
तू कान गरम करती थी
आज भी यदि गलती हो
जल्दी से हाथ कान तक जाए
पर तेरे हाथों का स्पर्श
अब कहाँ |
तू बसी है मन के हर कौने में
मुझ से दूर गयी तो क्या
तेरी दुआ ही है संबल मेरा
माँ होने का अहसास क्या होता है
मैं माँ हो कर ही जान पाई
तेरी कठिन तपस्या का
मोल पहचान पाई
पर अब क्या |
तूने कितने कष्ट सहे
मुझे बड़ा करने में
मेरा व्यक्तित्व निखारने में
आज बस सोच ही पाती हूँ
वे दिन अब कहाँ |

आशा





04 मई, 2011

वह अपना नहीं रहा


यह दूरी यह अलगाव
और बेगानापन
रास नहीं आता
कड़वाहट बढते ही
मन उद्वेलित हो जाता |
आस्था का दामन
दाग दार होता
तार तार हो छूटता नजर आता
ज्वार भावनाओं का
थमता नज़र नहीं आता |
यह रूखापन इतनी बेध्यानी
कठोरता चहरे पर
मन छलनी कर जाता
कटु वचन और मन मानी
गहरा घाव कहीं दे जाती |
पूर्णरूपेण विश्वास किया
क्या गलत किया
विचार जब भी मन में आता
इष्ट पहुँच से
बहुत दूर नजर आता |
क्या किसी और ने विलमां लिया
भटका दिया
उससे बाँट कर जीने में
कोई सार नजर नहीं आता |
रात और गहरा जाती है
पलकें बंद होते ही
वही भोला बेदाग़ चेहरा
नजर आता है
पर जब वह कहीं लुप्त हो जाता है
एक ही विचार मन में आता है
वह अपना नहीं रहा
बेगाना हो गया है |

आशा




03 मई, 2011

क्षुधा के रूप अनेक


क्षुधा के रूप अनेक
कुछ की पूर्ति होती सम्भव
पर कुछ अधूरे ही रह जाते
विवेक शून्य तक कर जाते |
हर रूप होता विकराल इसका
हाहाकार मचा जाता
क्षुधा की तृप्ति ना होने पर
गहन क्षोभ जन्म लेता |
हो भूख उदर या तन की
उससे है छुटकारा सम्भव
प्रयत्न तो करना पड़ता है
पर होता नहीं असंभव |
होती क्षुधा विलक्षण मन की
सब्ज बाग दिखाता है
कभी पूर्ति होती उसकी
कभी अधूरी रह जाती है |
आत्मा की क्षुधा
परमात्मा से मिलने की
कभी समाप्त नहीं होती
उस क्षण की प्रतीक्षा में
जाने कहाँ भटकती फिरती |
करते ध्यान मनन चिंतन
ईश्वर से एकात्म न होने पर
मन भी एकाग्र ना हो पाता
है मार्ग दुर्गम इतना कि
क्षुधा शांत ना कर पाता |

आशा



01 मई, 2011

हमारी काम वाली


उम्र के साथ दुकान लगी है
समस्याओं की
घर का काम कैसे हो
है सबसे कठिन आज |
नित्य नए बहाने बनाना
आए दिन देर से आना
भूले से यदि कुछ बोला
धमकी काम छोड़ने की देना
हो गयी है रोज की बात |
यदि कोई आने वाला हो
जाने कैसे जान जाती है
मोबाइल का बटन दबा
तुरंत सूचना पहुंचाती है
आज आना ना हो पाएगा
मेरा भैया घर आएगा
मुझे कहीं बाहर जाना है
कल तक ही आ पाऊँगी |
अर्जित ऐच्छिक और आकस्मिक
सभी अवकाश जानती है
उनका पूरा लाभ उठाती है
नागे का यदि कारण पूंछा
नाक फुला कर कहती है
क्या मेरे घर काम नहीं होते
या कोई आएगा जाएगा नहीं|
चाहे जैसी भी हो कामवाली
दो चार दिन ही ठीक काम करती है
फिर वही सिलसिला
हो जाता प्रारम्भ |
वे सभी एक जैसी हैं
उनसे बहस का क्या फ़ायदा
सारे दावपेच जानती हैं
हर बात का उत्तर देती हैं
अवसर मिलते ही
हाथ साफ भी कर देती हैं |
क्या करें परेशानी है
आदतें जो बिगड़ गयी हैं
ऊपर से उम्र का तकाजा
एक दिन भी उनके बिना
काम चलाना मुश्किल है
अब तो ये कामवाली
बहुत वी.आई.पी .हो गयी हैं |

आशा





30 अप्रैल, 2011

बर्फ का लड्डू


घंटी का स्वर
पहचानी आवाज

सड़क के उस पार
करती आकृष्ट उसे |
स्वर कान में पड़ते ही
उठते कदम उस ओर
रँग बिरंगे झम्मक लड्डू
लगते गुणों क़ी खान |
जल्दी से कदम बढाए
अगर समय पर
पहुंच ना पाए
लुट जाएगा माल |
पैसे की कोइ बात नहीं
आज नहीं
तो कल दे देना
पर ऐसा अवसर ना खोना |
ललक बर्फ के लड्डू की
बचत गुल्लक की
ले उडी
पर जीभ हुई लालम लाल |
फिर होने लगा धमाल
क्यूँ की
गर्मी की छुट्टी भी आई
ओर परिक्षा हुई समाप्त |
आशा