थी राह बाधित कहीं न
कहीं
कैसे आगे बढ़ पाती
जीवन कहीं खो गया
उसे कहाँ खोज पाती
जब भी कदम बढाने
चाहे
कई बार रुके बढ़ न
सके
वर्जनाओं के भार से
खुद को मुक्त ना कर सके
जितनी बार किसी ने
टोका
सही दिशा न मिल पाई
भटकाव की अति हो गयी
अंतस ने भी साथ छोड़ा
विश्वास डगमगाने लगा
आँखें धुंधलाने लगीं
कुछ भी नजर नहीं आया
थकी हारी एक दिन
रुकी ठहरी आत्मस्थ
हुई
विचार मग्न निहार
रही
दूर दिखी छोटी सी
गली
देख कर पक्षियों की
उड़ान
और ललक आगे जाने की
इससे संबल मिला
जीवन का उत्साह बढ़ा
तभी हो कर मगन
वहीँ आशियाना बनाया
चिर प्रतीक्षा थी
जिसकी
उसी को अपनाया |
आशा
आशा