अपनी ही दुनिया में
भावनाओं में बहता
कल्पना की उड़ान भरता
उड़ान जितनी ऊंची होती
वन उपवन में जब घूमता
वृक्षों का हमजोली होता
पशु पक्षियों को दुलराता
कहीं साम्य उनमें पाता
जब बयार पुरवाई बहती
जीवन में रंग भर देती
बैठ कर सरोवर के किनारे
जल की ठंडक महसूस कर
किनारे की गीली रेत पर
कई आकृतियाँ उकेरता
रेती से घर बनाना
फूलों से उसे सजाना
मन को आल्हादित करता
नौका में बैठ कर अकेले
उस पार आने जाने में
जल में क्रीड़ा करने में
मन मगन होता जाता
जाने कब चुपके से
कागज़ की नौका बना
जल में प्रवाहित करता
बढती नौका के साथ साथ
दौड लगाना चाहता
रूमाल से मछली पकडने का
आनंद भी कुछ कम नहीं
खुद को रोक नहीं पाता
बचपन में ही खो जाता |
आशा
आशा