05 अगस्त, 2013

वादे


तरह तरह के फूल खिले
लोक लुभावन वादों के
बनावटी इरादों के
झरझर झरे टप टप  टपके
बिखरे देश के कौने कौने में
पर एक भी न छू पाया
परमात्मा के चरणों को
रहे दूर क्यूं कि
थे वे कागज़ के फूल
सत्यता उनमें ज़रा भी न थी
केवल वादे थे नेक इरादे न थे
आम आदमी ठगा गया
जालक में फसता गया
उन दिखावटी वादों के
हाथ उसके कुछ भी न आया
अनैतिक इरादों की
चुभन के अलावा
हारा सा ठगा सा
हो हताश देखता रह गया
भविष्य की तस्वीर को  |
आशा

03 अगस्त, 2013

क्षण परिवर्तन का


व्यस्तता भरे जीवन में
वह ढूंड़ता सुकून
खोजता बहाने
हंसने और हंसाने के |
भौतिकता के  इस युग में
समय यूं ही निकल जाता
पर हाथ कुछ भी न आता
एक दिन ठीक दिखाई देता
दूसरे दिन चारपाई पकड़ता
अधिकाँश सलाहकार बनाते
मुफ्त में तरकीवें बताते
स्वास्थ्य में सुधार के लिए
चाहे कोइ काढ़ा जिसे
 भूले से भी न चखा हो
ना ही अजमाया हो
बहुत स्वास्थ्य वर्धक बताते
वह हर नुस्खा अजमाता
बद से बदतर होता जाता
जब कोइ कारण खोज न पाता
व्यस्तता पर झुंझलाता
लगता जैसे सारी मुसीबतें
बस वही झेल रहा हो
भौतिकता में लिप्त
दूर प्रकृति से होता जाता
घबराता परेशान होता
खोजता खुशी आस पास
पर तब भी प्रकृति के पास जा
अपना दुःख न बाँट पाता |

31 जुलाई, 2013

घर मेरा



घर मेरा गाँव में छोटा सा
पर आँगन उसमें बहुत बड़ा
पेड़ लगे नीम आम के
अमलताश और जामुन के |
तुलसी चौरे पर लहराती
दीप जला पूजी जाती
अपूर्व शान्ति मन में आती 
शाम ढले उस आँगन में |
पंछी आते जाते रहते
मींठी तान सुनाते रहते
सावन आया वर्षा आई
दिग्दिगंत हरियाली छाई |
अमवा पर झूला डलवाया
माँ से लहरिया रंगवाया
पहन उसे खुशी से झूमीं
सखियों के संग जी भर झूली |
बारिश में चूनर भीगी
तन भीगा मन भी भीगा
यूं ही सारा दिन बीत गया
तुझे न आना था ना आया |
तेरा मेरा जन्मों  का नाता
यह भी शायद भूल गया
मेरी आँखें भर भर आईं
यदि आ जाता तो क्या जाता ?
आशा

25 जुलाई, 2013

हाँ या नां




कभी हाँ तो कभी ना
क्या समझूं इसे
उलझी हुई हूँ
गुत्थी को सुलझाने में |
यूं तो मुंह से
 हाँ होती नहीं
लवों पर ना ही ना रहती
 पर होती हल्की सी जुम्बिश
लहराती जुल्फों  में
आरज़ू अवश्य रहती
कि ना को भी कोइ हाँ समझे
उलझी लट  सुलझाए
प्यार का अहसास समझे
ना को भी हाँ समझ
नयनों की भाषा समझे
मन में उतरता जाए | 
आशा