चला जा रहा सोच में डूबा
भीड़ से अलग हट कर
एक बूथ कई प्रत्याशी
नगण्य वोटिंग करवाने वाले
कई वोट डालने वाले
एक बिचारी छोटी सी
इलेक्ट्रोनिक वोटिग मशीन
कैसे चुनाव संपन्न होगा
बिना भेदभाव के |
अजब प्रजातंत्र है
कोई
भी स्वतंत्र नहीं यहाँ
प्रत्याशी से जब बात हुई
बड़ा दुखी था किसको बताए
अपनी व्यथा कथा
कितने पापड बेले थे
एक टिकिट पाने को
सभी दाव
पर लगा हुआ था
सफलता का
सहरा बांधने को |
मतदाता का सोच
ले चला गाँव की ओर
वह था नितांत अनिभिग्य
है कौन प्रत्याशी
किसने क्या क्या कार्य किये
बस चिन्ह
की पहचान थी
अपना अभिमत देने को
ऐसे भी थे लोग जो बोले
कई जीते कोई हारे
क्या फर्क पड़ता है
हम तो इतना जानते हैं
जहां थे वहीं रहेंगे |
सब ऐसे बंधन में बंधे हैं
स्वतंत्र सोच भी उनका नहीं
वह भी उधार का है
खुद का कुछ भी नहीं |