निकले बिल से एक साथ
कुछ कदम भी साथ न चले
छिड़ी दौनों में धमासान
पहले वे हंस बोल रहे थे
फिर बहस ने जगह बनाई
दौनों ने अपने पक्ष बताए
जब इससे मन नहीं भरा
अपशब्दों की बारिश हुई
हाथापाई की नौबत आई
जो बेचारा आया था
वहां बांबी पूजन को
हतप्रभ था यह दृश्य देख
पूजन का थाल हाथ से छूटा
यह कैसा अपशगुन हुआ
शोर बढ़ने लगा भीड़ जुटाने लगी
तालियों के शोर में
असली मुद्दे खो गए
व्यर्थ के तर्क कुतर्क में
सारे कार्य रहे अधूरे
एक भी पूर्ण न हो पाया
सफलता का सहरा
यहाँ वहां सजता रहा
झूमा झटकी में
एकाएक नीचे गिरा
धुल धूसरित हुआ
भीड़ का एक भाग
आँखें फाड़े देख रहा था
सोच भी गायब था
वह किसे पूज रहा था |
आशा
आशा