26 फ़रवरी, 2014
24 फ़रवरी, 2014
22 फ़रवरी, 2014
आशा निराशा
वह झूलता रह गया
आशा निराशा के झूले में
जब आशा ने पैंग बढाया
क्षण खुशी का आया
गगन चूमने की चाह जगी
ऊपर उठना चाहा
निराशा सह न पाई
उसे पीछे खींच लाई
कभी यह तो कभी वह
रहती इच्छाएं अनंत
सोच नहीं पाता
क्या करे किसका साथ दे ?
त्रिशंकु हो कर रह गया
दौनों की खीचतान में
आशा तो आशा है
पूर्ण हो ना हो
जाने क्या भविष्य हो
पर निराशा देखी है
यहीं इसी जग में |
आशा
20 फ़रवरी, 2014
हाइकू (सुख के पल )
ठहर गए होते
दुःख ना होता |
है छोटी सी
बानगी
तरसी दृष्टि
उसे ही देखने को
संगम को बेताब
डाली से जा उलझी
उड़ न सकी |
पहुंचाएगी कहाँ
किसे खबर |
एक बूँद रक्त की
18 फ़रवरी, 2014
याद नहीं रहते
निशा के आगोश में
स्वप्न सजते हैं
अनदेखे अक्स
पटल पर उभरते हैं
क्या कहते हैं ?
याद नहीं रहते
बस
सरिता जल से
कल कल बहते हैं |
यही चित्र मधुर स्वर
मन को बांधे रखते हैं
प्रातः होते ही
सब कुछ बदल जाता है
हरी दूब और सुनहरी धूप
ओस से नहाए वृक्ष
कलरव करते पंख पखेरू
सब कहीं खो जाते
रह जाता ठोस धरातल
कर्तव्यों का बोझ लिए
कदम आतुर चौके में जाने को
दिन के काम दीखने लगते
होते स्वप्न तिरोहित |
आशा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)