05 मार्च, 2014

सब सतही

प्यार न दुलार
 सब सतही
खून ठंडा हो गया
या सफेद
उसमें उबाल
 न आता |
अशांत मन
किसी की सच्चाई
नहीं जानता
इसी लिए
अपने हक़ के लिए
जूझना भी
नहीं चाहता |
सोचा हुआ
पूरा न होता
उदासी का कारण
समझ न आता |
आशा

03 मार्च, 2014

कभी पलट कर देखना



कभी पलट कर देखना
जहां हो वहीं ठहर जाओगे
किसी ने यदि नाम पूंछा
वह भी भूल जाओगे |
प्रेम रोग है ही ऐसा
दीवानगी की हद पार करता
सारी बातें भूल कर
खुद में ही सिमट जाता |
 वह कम नहीं किसी करिश्में से
जो भी इसमें खो जाता
सब कुछ अपना हारता
पर एक उपहार पाता |
आनेवाले जीवन में
यही बड़ा संबल होता
प्यार तो प्यार है
उसका कोई नाम न होता |
है छोटी सी बानगी
उसकी जादूगरी की
उसमें  खोते ही
 खुद को भूल जाओगे
फिर  लौट नहीं पाओगे |
आशा

01 मार्च, 2014

कई रंग



  1. सूर्य विमुख
    पर चंदा रौशन
    उसी ऊर्जा से |



    मेरी दो आँखें
    चाँद व सूरज से
    मेरे दो बेटे |

    की कलकल
    पहाड़ों में नदी ने
    स्वर मधुर |
     
    दृश्य सुन्दर
    हरा भरा पर्वत
    बहती नदी |


    सहेजे रिश्ते
    अंखियों के जल से
    धूमिल हुए |



    हैं रिश्ते ऐसे
    कटु होते या मीठे
    कैसे बताते |
    आशा



28 फ़रवरी, 2014

चिराग जला


रात भर चिराग जला
एक पल भी न सोया
फिर भी तरसा
 एक प्यार भरी निगाह को
जो सुकून दे जाती
उसकी खुशी में शामिल होती |
वह तो संतुष्टि पा जाता
किंचित स्नेह यदि पाता
दुगुने उत्साह से टिमटिमाता
उसी की याद में पूरी सहर
जाने कब कट जाती
कब सुबह होती जान न पाता |
पर ऐसा  कब हुआ
मन चाहा कभी न मिला
सारी शब गुजरने  लगी
शलभों  के साथ में |
आशा