19 अगस्त, 2014

बेटा ही क्यूं





 वर कैसा हो
बेटी विवाह योग्य
जान न पाया |

दुखी बिटिया
जीना दूभर हुआ
आंसू बहते |


सुलगी देह
दहकते अंगारे
देख न पाया |


बेटी दीखती
धधकती ज्वाला में
सह न पाया |


क्यूं चाहत है
बेटे की बेटी बिना
सोच न पाया |


आशा

17 अगस्त, 2014

जन्माष्टमी पर्व पर :-








कन्हिया आया
गोकुल गलियों में  
ले ग्वाल बाल |
धूम मचाई
दधि माखन खायो
मटकी फोड़ी | 

रूठी राधिका
बंसी की धुन सुन
धावत आई |
है नटखट
बरजोरी करत
राधिका संग |
गोकुल छोड़ा
वध कंस का किया
सभी संतुष्ट |

नीर बहाते
रह गए अधूरे 
गोप गोपियाँ |

उद्धव हारे 
समझा न सके वे
विरही मन |

 
आशा

15 अगस्त, 2014

पीड़ा

जीवन के अहम् मोड़ पर 
लिए मन में दुविधाएंअनेक 
सौन्दर्य प्रेम में पूरी  डूबी
सूरत सीरत खोज रही |
एक विचार एक कल्पना
 जिससे बाहर ना आ पाती
डूबती उतराती उसी में
कल्पना की मूरत खोजती |
उसका वर कैसा हो 
किसी ने जानना न चाहा 
पैसा प्रधान समाज ने 
उसे पहचानना नहीं चाहा |
कहने को उत्थान हुआ 
नारी  का महत्त्व बढ़ गया 
पर इतने अहम मुद्दे पर 
उससे पूछा तक न गया  |
विवाह उसे करना था 
निर्णय लिया परिवार ने 
सारे अरमान जल गए 
हवनकुंड की अग्नि में |
नया घर नया परिवेश 
धनधान्य की कमीं न थी 
पर वर ऐसा न पाया 
जिसकी कल्पना की थी |
भारत में जन्मीं थी 
संस्कारों से बंधी थी 
धीरे धीरे  रच बस गई 
ससुराल के संसार में |
कभी कभी मन में 
एक हूक सी उठती 
प्रश्न सन्मुख होता 
क्या यही कल्पना थी |
अब मन ने नई उड़ान भरी 
हुई व्यस्त सृजन करने में 
खोजती सौन्दर्य अपने कृतित्व में 
हुई सम्पूर्ण खुद ही में |
आशा







13 अगस्त, 2014

राष्ट्रीय पर्व(हाईकू )




अब 24 घंटे लहरायेगा तिरंगा



हुए स्वतंत्र
मन वचन कर्म
आज के दिन |

राष्ट्रीय पर्व
है पंद्रह अगस्त
मन प्रफुल्ल |


स्वागत गीत
लय मधुर धुन
आज के दिन |


उमंग भरा 
है यह महोत्सव
सब के लिए |


राष्ट्रीय पर्व
खुश जन मानस
अनोखा पर्व |

झंडा तिरंगा
है शान हमारा
आसमाँ छूता |

बालक वृन्द
भरे हैं उत्साह से
आज के दिन |

नहीं अकेली
संग सखी सहेली
पतंग उड़ी |

रंग बिरंगी
आसमाँ में पतंग
अनूठी लगी |

आशा

11 अगस्त, 2014

बंधन

बंधन ऐसा 
अटूट होता  जाता 
जब प्यार हो |
भूखा है मन 
तरसता पाने को 
नव जीवन |
मिले चाहत
 है यत्न आवश्यक 
हारना नहीं |
राह दुर्गम 
पहुँचना कठिन 
कर प्रयत्न |
रुकना नहीं
आगे बढ़ते जाना
हारना नहीं |

कच्चा है धागा
पर ग्रंथि अपूर्व
बहना ने दी |

उसकी दुआ
राखी मीठी मिठाई
भाई ने पाई |



आशा


08 अगस्त, 2014

रक्षाबंधन

  •                                                                    
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  •   आज न जाने क्यूं  
  • उदास हुई जाती हूँ  
नहीं  रहा  उत्साह पहले सा
रक्षा बंधन मनाने का |
बाजार में सजी राखी की
 दूकानों पर  भीड़ देखी
कुछ क्षण  के लिए
 कदम  भी ठिठके |
सोचा पास जा कर देखूं
फिर ख्याल आया
जब कुछ लेना ही नहीं
फिर मोह क्यूं पालूँ  |
बीते कल को याद किया
 जा पहुंची उस गली में
मैं खड़ी थी घर के सामने
जहां मनाए सारे  त्यौहार |
अचानक आँखें भर आईं
आज वह खाली था
कोई  नहीं था
जो मेरी राह देखता |
अब अकेले ही रहना है
 जानती हूँ फिरभी न जाने क्यूं
हर वर्ष की तरह
आज भी उदास हूँ |
आशा








07 अगस्त, 2014

फुलबाड़ी





 
फुलबाड़ी में
खिलते  गुलाब
चटकती कलियाँ
प्रातः काल का
अभिनन्दन करते
आदित्य की
प्रथम किरण का
झूम झूम स्वागत करते |
दिन व्यस्तता में जाता
फिर सूरज
अस्ताचल को जाता
सिमटती धूप
कलियाँ और फूल
रात्री में विश्राम करते |
फिर सुबह होते ही
अपनी सुगंध से
मन प्रफुल्लित कर देते
यह क्रम सदा चलता
जब तक जीवन
शेष न होता |