17 सितंबर, 2014

रीती आँखें



निगाहेंयार का
करम देखिये
भटकाव झेलना
सिखा रहे हैं |
रुसवाई का है सबब ऐसा
ना कोई गिला
ना शिकवा शिकायत
दूर होते जा रहे हैं ||
एक कतरा भी
आंसुओं का न टपका
रीती आँखों से
 निहार रहे हैं |
दीन दुनिया से
दूर बहुत
मानो जुदाई का
 जश्न मना रहे हैं |

आशा

15 सितंबर, 2014

काले कागा




चतुर कागा
बैठा मुढ़ेर पर
संकेत देता
अपनों के आने का
खुशियाँ दिलाने का |


काले कागा आ
नैवेध्य तेरे लिए
मैंने बनाया
यत्न से तुझे न्योता
आज श्राद्ध पक्ष में |...

कोयल कागा
दौनों  का एक रंग
चंट कोयल
उसको  छका देती
 कागा को  ठग लेती  |

है हतप्रभ
बाल कोयल देख
बच्चों के संग
कोयल के  अंडे थे
कागा ने बड़े किये |



आशा

13 सितंबर, 2014

विचार मन के हिन्दी दिवस पर



भारत एक उपमहाद्वीप है जिसमें बिभिन्न राज्यों में अलग अलग भाषा बोलने वाले लोग रहते हैं |हर भाषा का अपना महत्व है |हर प्रांत के लोग अपनी भाषा से लगाव रखते हैं |यही लगाव भाषा के विकास के लिए आवश्यक है |
साहित्य तभी धनवान होता है जब उस भाषा के लिए लोग बहुत शिद्दत से कार्य करें |केवल एक दिन किसी भाषा का दिवस मनाया जाए और पूरे साल उस पर  ध्यान ही न हो तो कैसे उस भाषा का उत्थान हो |
आज दिखावे के लिए हिन्दी दिवस मनाते हैं तरह तरह के संकल्प भी लेते हैं हिन्दी के उत्थान के लिए| पर
धर में यदि बच्चा हिन्दी में बात करे तो डाट पड़ती है और उसे समाज में भी हेय  दृष्टि से देखा जाता है |यह कहाँ का न्याय है |
मुझे बहुत दुःख होता है जब कोई अपनी माँ पर तो ध्यान देता नहीं और दूसरे की माँ को पूजता है |
सच्चाई तो यह है की कोई भी भाषा आपस में अपने विचारों के आदान प्रदान के लिए बुरी नहीं होती |
बुरा है हमारा सोच |यदि हम हिन्दी भाषी हैं तो हिन्दी में बात करने में शर्म क्यूं ?
अब आवश्यक हो गया है कि हम अपनी मानसिकता से ऊपर उठें और अपनी  भाषा का खुद सम्मान करें तभी उसे हिन्दुस्तान की भाषा बना पाएंगे |
आशा

12 सितंबर, 2014

सपनों में जी कर क्या होगा


 






सपनों में जी कर क्या होगा
नन्हीं बूँदें वर्षा की
कुछ कानों में गुनगुना गईं
वही बातें सोच सोच
तन मन भीगा वर्षा में |
घनघोर घटाएं छाईं
मौसम ने ली अंगडाई
घोर गर्जना आसमाँ  में
हड़कम्प मचाने आई |
चमकी बिजुरिया
हुआ अम्बर  स्याह
राही  यह सब देख कर
भूला अपनी राह |
रुका वृक्ष की छाया में
फिर भी बच न पाया
कल्पना कहीं खो  गई
भीगा भागा घर को आया |
सड़क पर कीचड़ ही कीचड़
घर का भी बुरा हाल था
टपकती अपनी छत देख
मन में मलाल आया |
पर अगले पल खुश हुआ
अभी कष्ट है तो क्या हुआ
यदि वर्षा कम हुई
जल आपूर्ति कैसे होगी |
सूखा पड़ गया अगर
पूरा साल कैसा होगा
वास्तविकता यही है
सपनों में जी कर क्या होगा |
आशा