25 सितंबर, 2014

पानी




सागर गहरा
अतुलित संपदा
कैसे कोई उसे आंके
उसकी गहराई में झांके |
समुद्र में सीपी
सीपी में मोती
जो दमकता पानी  से
बिना उसके कुछ भी नहीं |
खेला खाया जीवन जिया
पर पानी की कीमत ना जानी
उसके उतर जाने से
कुछ भी हांसिल ना हुआ |
सब यही छूट जाना है
पानी उतर जाने से
नाम तक गुम जाना है
उलझे सोच का  बहाना है |
महत्त्व उसका जब से जाना
सम्हाला जतन से  उसे
बचपन में कभी याद किया था
बिन पानी सब सून |

24 सितंबर, 2014

चाहती नहीं





चाहती नहीं 
बैसाखी तेरी साथ 
नारी आज की |

चमकी धूप 
चटकती कलियाँ 
भ्रमर मुग्ध |


भोर का तारा 
चमकता सितारा
प्यार जताता  |

हिन्दी महिमा 
देश  की है गरिमा 
गर्व है हमें |

आंधी में उडी 
अरमानों की धुल 
छलके नैन  |


हार श्रृंगार 
तुम्ही से प्रियतम 
भुलाऊँ कैसे |

प्रकृति नटी 
है धानी परिधान 
मन में बसी |

नहीं अंजान
क्या होना है अंजाम 
इस प्यार का |



आशा






22 सितंबर, 2014

तितली









  • तितली कितनी सुन्दर:-


    रूप चुराया
    पुष्पों की रंगीनी से
    ओरी तितली
    उड़ना सीख लिया
    उड़ते परिंदों से |


    प्यार जताना 
    कब किससे सीखा 
    नहीं बताया 
    है भौंरे की सलाह 
    या रंग आसमाँ का |

    लगती प्यारी
    यहाँ वहां उड़ती
    पुष्प चूमती
    आत्मसात करती 
    अनुपम लगती |



    आशा

    20 सितंबर, 2014

    यही सत्य है




    सागर तरंगित
    उर्मियों के उन्माद से
    होती हलचल
    पूनम के प्रभाव से
    ऊपर हलचल
    अंतस में ठहराव
    अनुपम है |
    सैलाव भावनाओं का
    तरंगित उर्मियों सा
    उन्मुक्त विचार
    कहीं नहीं टकराव
    अदभुद  है |
    तटबंध नहीं टूटते
    जब भी रौद्र रूप अपनाए
    वही भाव प्रगट होते
    बिना किसी परिवर्तन के
    अंतर मन के मंथन से
    अपेक्षित है |
    जाने अनजाने
    अनवरत दृष्टिगत होते
    रंग भरे केनवास पर
    दर्शाते मन की झलक
    कभी मौन हो जाते
    हलचल विहीन सागर से
    यही सत्य है |
    आशा