13 नवंबर, 2014

संयम वाणी का



कटु भाषण तीखे प्रहार
जिव्हा की पैनी धार
हो जाती जब  बेलगाम
चैन मन का हरती
मृदु भाषण मीठी मुस्कान
दुखियों के दुःख हरती
जो भी बोलो तोल मोल कर
अनर्गल शब्दों से परहेज कर
मान हनन से बचे रहोगे
शुभ आशीष संचित करोगे
जैसा बोया   वही काटोगे
यही यदि  स्मृति में हो 
 शान्ति के पुरोधा बनोगे
हर शब्द का अपना महत्व है
वेशकीमती है वह भी  
सोची समझी चयनित भाषा
होती भावों का भण्डार
गैरों को भी अपना लेती
व्यक्तित्व में आता निखार
संयम वाणी का
सुबुद्धि का परिचायक होता
सुख शान्ति का मानक होता 
मन को अपार शान्ति देता |
आशा


11 नवंबर, 2014

क्यूं ?


आज मुझे ब्लॉग पर आए पूरे पांच  वर्ष हो गए हैं |अतः आज मेरे ब्लॉग की सालगिरह है |
 
गागर में सागर भर लाया
  फिर यह प्यास क्यूं  ?
सारी खुशियाँ समेत लाया
फिर भी उदास क्यूं ?

बढ़ा होटल उत्तम भोजन

फिर भी भूखा क्यूं ?


कारण एक समझ आया 


 साथ न लाया मन को 


तभी तो है यह उदासी 


यदि वह आता यह न आती |
आशा

09 नवंबर, 2014

अकर्मण्य


चाहती बहुत कुछ
पर साहस की कमी
अवसर निकले हाथों से
भुना न पाई आज तक
मन में मलाल आया
आलम उदासी का  छाया
रात रात भर जागती
खांसती कराहती
पलायन का ख्याल आता
 बारम्बार झझकोरता 
पर इतनी कायर भी नहीं 
 निष्क्रीय निढाल
तर्क कुतर्क में उलझी
खुद ही में सिमटती गई
निंद्रा से कोसों दूर हुई
जाने कब सुबह हुई
भोर से नजरें चुराती
अक्षमता का बोध लिए
ओढ़ रजाई सो गई 
दिवास्वप्न में खो गई |
आशा

07 नवंबर, 2014

आग़ाज मौसम का




शबनम में भीगा गुलाब
मौसम का हाल बताता
पत्तों पर ओस नाचती
 
उसका एहसास कराती 
फूल खिले बगिया बगिया
स्वागत करते मौसम का
शबनमी पुष्प मुस्कुराते
इसे करें न  नजर अंदाज
 दस्तक खुशनुमा पवन की
आहट ठन्डे मौसम की
सुखद गुनगुनी धूप की
सैर प्रातः दूर की
मन में उत्साह भरे  
हरी भरी बगिया महके
मन मयूर नर्तन करे
रंग बिरंगे पुष्पों से
नव ऋतु का स्वागत करे |
आशा

06 नवंबर, 2014

आजा बहार आजा

गुंजन भवरों सा
उड़ना तितली सा
हर फूल उसे प्यारा
आजा बहार आजा
तेज हवा का झोंका
बाधित उड़ान करता
चोटिल पंख होते
पर रुकने का
 नाम न लेते
नव कलिकाएं
 मनमोहक  सुगंध
आकृष्ट  इतना करती
हिलमिल कर उनमें
खुद का अस्तित्व
नजर न आता
 होता  तब ठहराव नहीं
नीलाम्बर   छू 
खो जाना चाहता
आजा बहार आजा
तुझमें रम  जाना चाहता 


आशा