10 मई, 2015

विश्राम



बिस्तर अस्पताल का के लिए चित्र परिणाम
एक सोच उभरता था  चाहे जब
मुझे विश्राम  नहीं मिलता
शैया आकर्षित करती थी
जब तब सोने का मन होता था |
ना जाने क्यूं आज
 थकावट हुई बेचैनी बढी
एक हादसे ने मेरा सुख छीना
नींद चुराली |
पैर फिसला चोट लगी
सोचा अब तो आराम मिलेगा
शैया पर पड़े रहना है
यह मात्र कल्पना निकली |
अस्पताल का मुंह देखा
वे दिन थे कितने कठिन
कल्पना भयावह लगती है
वहां जिन्दगी कितनी सस्ती है |
घर आई चैन की सांस ली
सोच ने करवट बदली
दो दिन भी न कट पाए शान्ति से
लगा जिन्दगी ठहर  सी गई है
बेमतलब लगने लगी है  |
 ख्यालों ने सर उठाया
समय काटे नहीं कटता
गति उसकी धीमीं लगती
यह ठहराव रास नहीं आता |
अंतराल के बाद भी
विश्राम से लगाव न हुआ
असहज होने लगी हूँ
अक्षमता का बोध जो है | |
लोग न जाने कैसे
 व्यर्थ पड़े रहते हैं
बिना किसी काम के
 जीवन यूं ढोते हैं |
अब तो एक एक दिन
 भारी लगने लगा है
जाने कब छुटकारा होगा
ऐसे मिले आराम से |
आशा

08 मई, 2015

ना बरजूंगी

kanha ne raas rachaiya के लिए चित्र परिणाम
तुम आ जाना
बाल रूप धरके
मन रिझाना |
कन्हिया आना
माखन चुरा लेना
ना बरजूंगी |

मेरे ये कर्ण
मुरली की धुन को
तरस गए |
रास रचाना
गोप गोपियों संग
कदम तले |
आशा

07 मई, 2015

अश्रु जल

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जल बरसा
आँखों से छम छम
रिसाव तेज |
रुक न सका
लाख की मनुहार
बहता रहा |

वर्षा जल सा
कपोल की राह पे
चलता गया |
सूखे कपोल
निशान बन गए
अश्रु जल के |
क्या बात हुई
जो बारिश न थमीं
 क्या कह दिया |

आशा

06 मई, 2015

पूर्ण परिवार

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जन्म जन्म का बंधन 
सप्तपदी में समाया 
सात वचन मजबूत बंधन 
कभी टूट न पाए |
सच्चे दिल से किया समर्पण 
वजन बहुत रखता है 
सत्य वचन कर्मठ जीवन से
  परिवार सवर जाता है |
बच्चे होते सेतु बांध से 
घर को बांधे रखते 
टकराव होने न देते 
सामंजस्य बनाए रखते |
प्यार दुलार के साथ होता
माँ का अनुशासन आवश्यक
पिता की छात्र छाया बिना
घर अधूरा होता  |
बिना बहन भाई के रिश्ते 
घर की रौनक अधूरी
 वह पूर्ण नहीं होता 
एक का भी अभाव अखरता |
आशा

05 मई, 2015

क्या मांगूं ?

धरवार है परिवार है 
बच्चों की बहार है
कुछ भी कमीं नहीं
फिर तुझसे क्या मांगूं |
प्यार है दुलार है
धनधान्य है सब कुछ है
जीवन में रवानी है
मैं तुझसे क्या मांगूं |
बस अब एक ही
बात है शेष
जीवन की चाह नहीं है
इसी लिए तुझसे
मुक्ति मार्ग मांगूं |
आशा

04 मई, 2015

राधे राधे कृष्ण कृष्ण



जब से शीश नवाया 
उन चरणों में
एक ही रटन रही
राधे कृष्ण राधे कृष्ण
आस्था बढ़ती गई
नास्तिकता सिर से गई
गीता पढ़ी मनन किया
गहन भावों को समझा
मन उसमें रमता गया
आज मैं मैं न रहा
कृष्णमय हो गया
नयनाभिराम छबि दौनों की
हर पल व्यस्त रखती है
बंधन ऐसा हो गया है
वह बंधक हो गया है
राधे  राधे  कृष्ण कृष्ण |

03 मई, 2015

बेटी सुशिक्षित

'Sun on Lap of Aahana.'
शिक्षित बेटी
जलती मशाल है
घर रौशन |

नहीं निर्बल
बेटी हुई जाग्रत
नही आश्रित |



बेटी हमारी
सावन की फुहार
बड़ी प्यारी है |

महके बेटी
फूलों की बहार में
मोगरे जैसी |


बेटी बचाओ
 जब  हो सुशिक्षित 
 हो गर्व हमें  |