30 मार्च, 2016

नारी आज की


आज की नारी के लिए चित्र परिणाम
निर्भय हो विचरण करती
अपनी क्षमता जानती
अनजान नहीं परम्पराओं से
  सीमाएं ना लांघती |


परिवार की है बैसाखी

हर कदम पर साथ देती

है कर्मठ और जुझारू
आत्मविश्वास से भरी रहती |

जी जान लगा देती 
हर कार्य करना चाहती 
हार उसे स्वीकार नहीं 
खुद को कम ना आंकती |

है यही  छुपा राज
  नारी के उत्थान का 
आज के समाज में 
अपने पैर जमाने का |

पर अभी भी मार्ग दुर्गम 
पार करना सरल नहीं 
है परीक्षा कठिन फिर भी 
उसे किसी का भय नहीं |

 आँखें नहीं भर आतीं उसकी 
छोटी छोटी बातों पर 
दृढ़ता मन में लिए हुए है 
निर्भयता का है आधार |


 दृढ इच्छा शक्ति से भरी 
सजग आज के चलन से 
अब नहीं है अवला
जीती जीवन जीवट से |

माँ बहन पत्नी प्रेमिका 
ही नहीं बहुत कुछ है वह 
जिस क्षेत्र में कदम रखती 
सफलता उसके कदम चूमती |

है आज की नारी 
अवला नहीं है 
सर्वगुणसंपन्न है 
बेचारी नहीं है |
आशा











28 मार्च, 2016

तुम क्यूं भूले

राधा कृष्ण फोटो के लिए चित्र परिणाम
 
है राधा रानी शक्ति तुम्हारी
तुम क्यूं भूले
मथुरा में अपना डेरा डाला
राधा को भूल गए
है यह कैसा न्याय तुम्हारा
उसने सब कुछ तुम पर वारा
तुमने पलट कर न देखा
कर्तव्य पथ पर ऐसे चले
वृन्दावन छोड़ चले
वह तो है शक्ति तुम्हारी
उसे यदि साथ ले जाते
अधिक ही सफलता पाते
फिर भी वह साथ रही सदा
तुम्हारी छाया की तरह
आज भी अधूरे हो राधा बिना
कहलाते हो राधा रमण
सब जपते राधे कृष्ण
राधे राधे |
आशा

27 मार्च, 2016

बंधन कच्चे घागों का

हर सुबह तुम्हीं से होती है 
वह तुम में खोई रहती है 
शाम न बीते तुम्हारे बिना 
हर आहट की  टोह लेती है 
निशा निमंत्रण जब देती 
अपने स्वप्नों में खोई रहती 
नहीं जानती है वह क्या 
है वजूद उसका क्या 
तुम्हारी जिन्दगी में 
फिर भी जानती है
है अधिकार तुम पर क्या 
उसे ही सम्पत्ती मान 
 ह्रदय में सजोए रखती है
यही उसे बांधे रखता 
दिवा स्वप्न सजाने में 
तुम में ही खोए रहने में 
भूल नहीं पाती वह दिन 
जब तुम से पहली बार मिली 
मन की कली कली खिली 
है कल्पनातीत वह बंधन 
कच्चे धागों का गठबंधन
वह तुम्हारी हो गई 
तुम में रम कर रह गई 
हो तुम्ही  सब कुछ उसके
वह अधूरी तुम्हारे बिना 
यही उसे याद रहा 
सात जन्मों का वादा रहा 
राज यही सफलता का 
किसी से छुप नही पाता 
उसे अनुकरणीय बनाता |



आशा






24 मार्च, 2016

गुजिया


गुझिया के लिए चित्र परिणाम
मावा मंगा फ्रिज में रखा
हिदायत दी जूठा ना करना
पर जब भी ध्यान जाता
उस और खीच ले जाता
मां ने पहले ही कहा था
पूजा होगी हाथ न लगाना
जैसे तैसे रात कटी
गुजिया मन में पैठ गई
मैदा गूंध अलग रखी
मावा मेवा का पूर बनाया
बनते देख मुंह में पानी आया
बनाने में समय बहुत लगा
वह बेली गई भारी गई
फिर कढ़ाई में तली गई
सौंधी खुशबू मावे की
गुजिया के तले जाने की
चौके तक कई बार ले गई
पर संयम तोड़ न पाए
बचने को वर्जना से
इंतज़ार में बेचैन रहे
पूजा की गुजिया अलग निकाली
तब मां ने आवाज लगाई
जल्दी से आजाओ
कहीं हाट उठ न जाए
गुजिया कहीं उड़ न जाए
धैर्य की विजय हुई
एक अधिक गुजिया मिली
जिसकी मिठास मुंह में घुली
जो आनंद उसमें मिला
आज तक भूल न पाए |
आशा







20 मार्च, 2016

होली आई रे


जली होलिका
प्रहलाद न जला
विजयी सत्य |

फूलों के बीच
भ्रमर व कंटक
काटते नहीं |


तितली रानी
फागुन ले आई है
खेलती रंग |

होली आ गई
प्यार दुलार बाँटें
खाएं गुजिया |

होली आई रे
फगुआ मांग रहा
टेसू अड़ा है |

ना संवेदना
न मलाल मन में
दुखित मन

आया फागुन
 आए पिया न पास
है कैसा फाग

वह् सींचती
तुलसी का विरवा
तेरी याद में |

टेसू का रंग
उसके मन भाया
तुम आए ना |

विरही मन
बाट जोह रहा है
कब आओगे |



आशा

19 मार्च, 2016

मुक्तक

दीवानगी इस हद तक बढी
याद न रहा वह कहाँ खड़ी
यदि किसी परिचित ने देखा
सोचेगा किस ओर चली |

मन मयूर थिरकने लगता
मंथर गति से नाचता
देख अपनी प्रियतमा
जीवन धन सब वारता  |

उसकी दीवानगी बढ़ती गई 
चर्चा जिसकीआम हो गई 
पागलपन इस हद तक बढ़ा 
वह सरेआम बदनाम हो गई |

जब ख्याल बुरे मन में आते हैं 
अंतस छलनी कर जाते हैं 
उसकी प्यार भरी एक थपकी से
हम पार उतर पाते हैं |


आशा

17 मार्च, 2016

दुनिया चमक दमक की

चमक दमक दुनिया की के लिए चित्र परिणाम
छल कपट में लिप्त
 है यह दिखावे की दुनिया
चमक दमक की दुनिया 
छद्म प्रदर्शन की दुनिया 
मेरी क्या विसात कि उसे
 बेपरदा कर पाऊँ 
है अच्छा भी यही 
कि हूँ दूर बहुत उससे
तभी तो जी पाती हूँ 
खुल कर  सांस ले पाती हूँ 
हर बनावट से दूर 
शान्ति से रह पाती हूँ 
जब भी जिसने 
वहां कदम रखे 
एहसासों का खजाना दिखा 
चमक दमक से  जिसकी 
खुले प्रलोभनों के द्वार दिखे 
लालच उन्हें पाने का 
दीवानगी की हद तक बढ़ा
वर्त्तमान मेराथन में
वह भी शामिल हो गया
पर जब पीछे मुड़ कर देखा
बहुत देर हो चुकी थी
हाथों में कुछ भी न था
चंद कण भर  थे शेष 
सब कुछ फिसल गया था
मुट्ठी में भरी  रेत  की तरह
बस रह गया था
थके हुए तन मन का भार
जिसे वह ढोए जा रहा था
दुनिया की रीत निभा रहा था
यथार्थ समक्ष आते ही
वह टूटने लगा बिखरने लगा
असहनीय  पीड़ा से भरा
असहज सा होने लगा
रही सम्हलने की कोशिश बेकार
क्यूं कि बहुत देर हो चुकी थी
किसी में इतनी शक्ति न थी
जो सहारा उसे दे पाता
चमक दमक की दुनिया से
उसे बाहर ला पाता
मैंने देखा है उसे बहुत नजदीक से
उसी से यह नसीहत ले पाई
बाह्य आडम्बरों युक्त दुनिया से
एक दूरी बना पाई
वही मेरे काम आई
अब वहां की चमक दमक
 मुझे त्रस्त नहीं करती
बहुत दूर हूँ दिखावे से
हर बनावट  से दूरी रख
 शान्ति से रह पाती हूँ
आशा