19 दिसंबर, 2018

मुस्कान

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  मुस्कान बहुत मंहगी पड़ती
जब दिल से  दुआ न  निकलती
ना शब्दों का आदान प्रदान
केवल अधरों पर मुस्कान |
वह भी केवल दिखावे की
जैसी दिखाई देती वैसी है नहीं
मन से निकली आवाज नहीं
ना ही आत्मीयता  का प्रभाव |
 अधरों में सहमी सिमटी 
 रहती एक  कैदी सी
 पहरा रहता आठों प्रहर
 कितनी लगती  लाचार बेबस |
सब की दृष्टि अलग होती
भोले बचपन की मुस्कान
है कितनी निश्छल निरापद  
मन मोहक छवि बालक की
मन झांकता उसमें से |
 व्यंगबाण पर आती मुस्कान  
मन का कपट झलकाती
किसी की गलतफहमी पर
या किसी की नादानी पर
तभी बहुत मंहगी पड़ती |
यह न जान पाता  कोई
मुस्कान तो मुस्कान है
अपने अंतर की हलचल का
सत्य ही बयान करती |
आशा

मुश्किल है निभाना


मुश्किल है रिश्तों को निभाना
 वे कच्ची डोर से बंधे होते    
जरा से झटके में टूट जाते  
मन को टूटन बहुत खलती है
पर गलती कहाँ से प्रारम्भ हुई
खोज कर देख नहीं पाते
केवल पछतावे के सिवाय
 दुखी होने के अलावा
 कुछ हाथ नहीं आता
रिश्ते फिर से  सुधर नहीं पाते
यदि कोशिश की जाए
आंशिक सुधार होता है 
रिश्तों की चादर में थेगड़े लगे
 स्पष्ट  नजर आते हैं
वह बात नहीं रहती उनमें
जो बनाते समय रही थी
है नहीं आसान 
 टूटे रिश्तों को सवारना
उससे अधिक मुश्किल है
 अपनी कमियों को स्वीकारना
 जब रिश्ते निभा नहीं सकते
फिर पहल किस लिए ?
आशा

16 दिसंबर, 2018

अनोखी दुनिया कविता की

है अनौखी दुनिया कविता की 
दिन में भी तारे दिखाते हैं
भरा पेट होता है फिर भी
भूखे दिखाई देते हैं |
लेखन की भूख
 कभी शांत नहीं होती 
शब्दों के अम्बार लगे रहते
विचार भी कहाँ पीछे रहते
पहले हम पहले हम कह कर
लाइन तोड़ देते हैं 
क्रम में आने का
 इंतज़ार नहीं करते
 मुश्किल फँस जाते
 जब घड़ी इंतज़ार की आती
मन पर नियंत्रण नहीं कर पाते
 बहुत बेचारे हो जाते
शब्दों के जंगल में फंस जाते 
और निकल नहीं पाते 
कभी शब्दों पर भारी विचार 
कभी बाजी पलट जाती 
विचारों की चांदी हो जाती |
आशा

15 दिसंबर, 2018

दिल मिले दिल से

















हिलमिल साथ
 कार्य करते थे
फिर भी आपस में
 दुराव रखते थे
दिल से दिल 
 मिले  जब से
तो मिली जिन्दगी आप से
न मन मुटाव रहा
नाही कोई  बैर
दिल की बातें कहने को
एक कंधा मिल गया 
जीवन सफल होगया  
आशा

क्या चाहते हैं ?






चाहते हैं बर्फ ही बर्फ हो आसपास 
अवसर मिला है क्यूँ न लाभ उठाएं 
  टिकिट बुक करवाया 
बहुत उत्साह से
          पर मित्र बदल गया
             उसे ठण्ड  रास नहीं आती
कह कर कन्नी काटली
अब क्या किया जाए
 परेशान हाल है
चाहत नहीं यात्रा  नकारने की 
दूसते से साथ चलने को कहा  
उसने  भी नकार दिया
दिल बहुत दुखा 
 पर तब  भी जाने का
अवसर नहीं छोड़ा
जो चाहते थे
 पा कर ही दम लिया
साथ एक बुजुर्ग का किया
उन ने मेरा मन रखा
मैंने भी सच्चे मन से
उनकी  सेवा करने का
 प्रण लिया मन में
दौनों साथ हो लिए
यात्रा का आनन्द भरपूर  लिया 
जो चाहा उसे पा लिया 
आज भी वह बर्फवारी
  का आनंद मन में बसा है 
हमउम्र न थे फिर भी
 खूब आनंद लिया||